विषाक्त भोजन:
अर्थपूर्ण रूप से स्वच्छ, पौष्टिक तथा उपयुक्त दिखायी देने वाले भोज्य पदार्थ भी कभी-कभी व्यक्ति को रोगी बना सकते हैं। सामान्यतः ऐसे भोजन में कोई-न-कोई पदार्थ व्यक्ति को ग्राह्य नहीं होता। इसका मुख्य कारण होता है, भोजन के अन्दर उपस्थित ऐसे पदार्थ जो व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद विषैले प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यही विषाक्त भोजन है। वास्तव में कुछ जीवाणु आहार में मिलकर उसे विषाक्त बना देते हैं। आहार को विषाक्त बनाने वाले मुख्य जीवाणुओं का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
(1) साल्मोनेला समूह:
इस समूह के जीवाणु पशु-पक्षियों के शरीर में पाए जाते हैं। मनुष्य जब इनका मांस खाते हैं अथवा दूध पीते हैं, तो जीवाणु उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। संक्रमण के छह घण्टों से दो दिन तक के समय में जीवाणु विषाक्तता के लक्षण प्रकट कर देते हैं। भोजन की यह विषाक्तता प्रायः मांस, अण्डे, क्रीम तथा कस्टर्ड आदि द्वारा उत्पन्न होती है। मक्खियाँ भी इन जीवाणुओं के संवाहन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।
लक्षण :
मितली, वमन, पेट में पीड़ा तथा दस्त होते हैं, जिनके कारण रोगी निर्जलीकरण अथवा डी-हाइड्रेशन का शिकार भी हो सकता है। उचित उपचार न मिलने पर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
बचाव एवं उपचार
⦁ भोजन को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए।
⦁ भोजन बनाने व करने से पूर्व हाथों को साबुन से भली प्रकार से धो लेना चाहिए।
⦁ भोजन को उच्च ताप पर पकाना चाहिए तथा संरक्षित भोजन को खाने से पूर्व लगभग 72° सेण्टीग्रेड तक गर्म कर लेना चाहिए। इससे भोजन के सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
⦁ डी-हाइड्रेशन होने पर किसी योग्य चिकित्सक द्वारा ग्लूकोज एवं सैलाइन जल चढ़वा देना चाहिए।
(2) स्टैफाइलोकोकाई समूह:
इस समूह के जीवाणु प्राय: वायु में, मनुष्यों की नाक, गले, फोड़े-फुन्सियों व घावों में पाए जाते हैं। ये भोजन बनाते समय खाँसने व छींकने तथा गन्दे हाथों के माध्यम से भोजन में प्रवेश करते हैं। भोजन के विषाक्त होने का मुख्य कारण भोजन के पकाने के पश्चात् इसे अधिक समय तक गर्म रख छोड़ना है। इस प्रकार का विषाक्त भोजन खाने के एक से छह घण्टों के अन्दर विषाक्तता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
लक्षण:
रोगी शिथिल हो जाता है। यह विषाक्तता अधिक भयानक परिणाम नहीं दिखाती है।
बचाव एवं उपचार:
⦁ भोजन बनाते समय सावधानी से छींकना अथवा खाँसना चाहिए।
⦁ भोजन बनाने से पूर्व हाथों को भली प्रकार साबुन से धोना चाहिए।
⦁ भोजन पकाने के बाद ठण्डा कर उसे रेफ्रिजेरेटर में रखने से जीवाणुओं के पनपने की सम्भावना कम रहती है।
⦁ अत्यधिक ताप पर देर तक भोजन पकाने पर भोजन का विषैलापन नष्ट हो जाता है।
⦁ रोगी को उपवास रखना चाहिए तथा हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए।
⦁ अधिक विषाक्तता होने पर योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना विवेकपूर्ण रहता है।
(3) क्लॉस्ट्रीडियम समूह-क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रिजेन्स :
नामक इस समूह का जीवाणु प्रायः डिब्बा बन्द भोज्य पदार्थों को विषाक्त करता है। यह जीवाणु एक प्रकार का हानिकारक टॉक्सिन अथवा विष उत्पन्न करता है।
लक्षण: मानव शरीर में प्रवेश करने पर पेट में पीड़ा व डायरिया के लक्षण पैदा करता है, परन्तु इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के कारण मृत्यु की सम्भावना बहुत कम रहती है।
उपचार:
एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक तथा पेनीसिलीन का प्रयोग करने से रोगी शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।
(4) क्लॉस्ट्रीडियम बौटूलिनम:
इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न भोजन की विषाक्तता को बौटूलिज्म कहते हैं। यह जीवाणु भयानक टॉक्सिन उत्पन्न करता है। इसकी भयानकता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एक औंस टॉक्सिन करोड़ों लोगों की मृत्यु के लिए पर्याप्त है। ये जीवाणु अपनी बीजाणु अवस्था में मछलियों, पक्षियों, गाय व घोड़े जैसे पशुओं व मनुष्यों की आँतों में पाए जाते हैं। जीवाणुओं के ये बीजाणु खाद तथा मल-मूत्र जैसी गन्दगियों के माध्यम से भूमि में पहुँचकर कृषि द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थों से चिपक जाते हैं। ऑक्सीजनविहीन परिस्थितियों में तथा असावधानियों से तैयार किए गए डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों में ये बीजाणु अंकुरित हो असंख्य को जन्म देते हैं। सेम, मक्का, मटर व चना इत्यादि इस प्रकार के डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं। इस अवस्था में जीवाणु टॉक्सिन उत्पन्न करते हैं, जिसके मनुष्यों में होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं–
प्रभाव:
⦁ विषाक्त भोजन के सेवन के केवल कुछ ही घण्टों में रोगी पैरालिसिस अथवा लकवे का अनुभव करने लगता है।
⦁ आँखों में धुंधलापन, भोजन चबाने व सटकने में तथा साँस लेने में कठिनाई विषाक्त भोजन के अन्य प्रभाव हैं।।
⦁ बोलने में अस्पष्टता के साथ ही भुजाएँ लकवे की स्थिति में हो जाती हैं।
⦁ हृदय तथा फेफड़ों तक टॉक्सिन का प्रभाव पहुँचने पर रोगी की मृत्यु निश्चित है।
बचाव एवं उपचार:
⦁ एण्टीबायोटिक औषधियों के उपयोग का इस विषाक्तता में कोई लाभ नहीं है।
⦁ रोगी को तुरन्त अस्पताल ले जाना चाहिए।
⦁ एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक की पर्याप्त मात्रा से ही रोग पर नियन्त्रण सम्भव है। यह उपचार भी समय पर उपलब्ध होने पर ही लाभकारी है अन्यथा मृत्यु निश्चित है।
⦁ यह विषाक्तता इतनी भयानक है कि ठीक उपचार होने पर भी पीड़ित मनुष्य 6-7 महीनों में पूर्ण स्वस्थ हो पाता है।
⦁ अप्राकृतिक लगने वाले दुर्गन्धयुक्त भोजन को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए, क्योंकि विषाक्त भोजन पशु-पक्षियों में भी विषाक्तता उत्पन्न कर सकता है।
⦁ डिब्बों में भोजन बन्द करते समय भाप के दबावयुक्त ताप से डिब्बों व भोजन को । विसंक्रमित करना चाहिए।
⦁ डिब्बा-बन्द भोजन को खाने से पूर्व उच्च ताप पर लगभग दस मिनट तक पकाना चाहिए।