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तुलसीदास की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों (रचनाओं) का उल्लेख कीजिए।

या

कवि तुलसीदास का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी एक रचना का नाम लिखिए।

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गोस्वामी तुलसीदास भक्तिकाल की रामभक्ति काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि थे। इनकी भक्ति दास्य भाव की थी। इन्होंने श्रीराम के शील, शक्ति और सौन्दर्य के समन्वित रूप की अवतारणा की। ये एक सिद्ध कवि थे जो देश और काल  की सीमाओं को लाँघ चुके थे। मानव प्रकृति के जितने रूपों का हृदयग्राही वर्णन इनके काव्य में मिलता है, वैसा अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। इनका ‘श्रीरामचरितमानस’ मानव संस्कृति का अमर-काव्य है।

जीवन-परिचय–गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई० (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं० 1589 वि०) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्म एटा जिले के ‘सोरो’ ग्राम में मानते हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया है। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता हुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरु का वरदहस्त प्राप्त हो गया। इन्हीं की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन-अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही ये काशी आये थे, जहाँ परम विद्वान् महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद-वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात कर दिया।

तुलसी का विवाह दीनबन्धु पाठक की सुन्दर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए ये अपनी ससुराल जा पहुँचे। इस पर पत्नी ने इनकी भर्त्सना की

अस्थि चर्म मय देह मम, तामें ऐसी प्रीति।
तैसी जो श्रीराम महँ, होति न तौ भवभीति॥

अपनी पाली की फटकार से तुलसी को वैराग्य हो गया। अनेक तीर्थों का भ्रमण करते हुए ये राम के पवित्र चरित्र का गायन करने लगे। अपनी अधिकांश रचनाएँ इन्होंने चित्रकूट, काशी और अयोध्या में ही लिखी हैं। काशी के असी घाट पर सन् 1623 ई० (श्रावण,  शुक्ल पक्ष, सप्तमी, सं०1680 वि०) में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है

संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर ॥

कृतियाँ (रचनाएँ)—तुलसीदास जी द्वारा रचित बारह ग्रन्थ प्रामाणिक माने जाते हैं, जिनमें श्रीरामचरितमानस प्रमुख है। इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है-

(1) श्रीरामचरितमानस-तुलसीदास जी का यह सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र के द्वारा हिन्दू जीवन के सभी महान् आदर्शों की प्रतिष्ठा हुई है।
(2) विनयपत्रिका-इसमें तुलसीदास जी ने कलिकाल के विरुद्ध रामचन्द्र जी के दरबार में पत्रिका प्रस्तुत की है। यह काव्य तुलसी के भक्त हृदय का प्रत्यक्ष दर्शन है।
(3) कवितावली—यह कवित्त-सवैया में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है। इसमें रामचरित के मुख्य प्रसंगों का मुक्तकों में क्रमपूर्वक वर्णन है। यह ब्रजभाषा में रचित ग्रन्थ है।
(4) गीतावली-यह गेय पदों में ब्रजभाषा में रचित सुन्दर काव्य है। इसमें प्राय: सभी रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है तथा अनेक राग-रागिनियों का प्रयोग मिलता है। यह रचना 230 पदों में निबद्ध है।
(5) कृष्ण गीतावली—यह कृष्ण की महिमा को लेकर 61 पदों में लिखा गया ब्रजभाषा का काव्य है।
(6) बरवै रामायण-बरवै छन्दों में रामचरित का वर्णन करने वाला यह एक लघु काव्य है। इसमें अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है।
(7) रामलला नहछू–संहलोकगीत शैली में सोहर छन्दों को लघु पुस्तिका है, जो इनकी प्रारम्भिक रचना मानी जाती है।
(8) वैराग्य संदीपनी-इसमें सन्तों के लक्षण दिये गये हैं। इसमें तीन प्रकाश हैं। पहले प्रकाश के 6 छन्दों में मंगलाचरण है। दूसरे प्रकाश में संत-महिमा का वर्णन और तीसरे में शान्तिभाव का वर्णन है।
(9) जानकी-मंगल-इसमें सीताजी और श्रीराम के शुभविवाह के उत्सव का वर्णन है।
(10) पार्वती-मंगल—इसमें पूर्वी अवधी में शिव-पार्वती के  विवाह का काव्यमय वर्णन है।
(11) दोहावली-इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति, नाम-माहात्म्य और राम-महिमा का वर्णन है।
(12) रामाज्ञा प्रश्न-यह शकुन-विचार की उत्तम पुस्तक है। इसमें सात सर्ग हैं।

साहित्य में स्थान–गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी-साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिन्दी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाये। साथ ही अनेक मतों और  विचारधाराओं में समन्वय स्थापित करके समाज में पुनर्जागरण का मन्त्र फेंका। इसीलिए इन्हें समाज का पथ-प्रदर्शक कवि कहा जाता है। इनके सम्बन्ध में अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध’ जी ने उचित ही लिखा है
कविता करके तुलसी न लसे । कविता लसी पा तुलसी की कला ॥

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