[ साधकता = साधना का गुण। पावस = वर्षा ऋतु। विहान = प्रात:काल।]
प्रसंग-इन पंक्तियों में कवयित्री हिमालय की महानता का वर्णन करती हुई अपने जीवन को हिमालय के समान ढालना चाहती हैं। |
व्याख्या-महादेवी जी अपने जीवन को हिमालय की छाया में मिला देना चाहती हैं। तात्पर्य यह है। कि वे हिमालय के सद्गुणों को अपने आचरण में उतारना चाहती हैं। इसीलिए वे हिमालय से कहती हैं कि मेरी कामना है कि मेरा शरीर भी तुम्हारी तरह कठोर साधना-शक्ति से परिपूर्ण हो और हृदय में तुम्हारे जैसी करुणा का सागर भर जाए। मेरे हृदय में तुम्हारे जैसी करुणा की बरसात के कारण सरसता बनी रहे, परन्तु आँखों में ज्ञान की ज्योति जगमगाती रहे।
काव्यगत सौन्दर्य-
⦁ महादेवी जी अपने तन-मन को हिमालय के समान साधना-शक्ति और करुणा से भर देना चाहती हैं।
⦁ भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली
⦁ शैली-भावात्मक गीति।।
⦁ रस-शान्त।
⦁ गुण-माधुर्य।
⦁ शब्दशक्ति–लक्षणा।
⦁ छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁ अलंकार–‘तन तेरी’ में अनुप्रास तथा हिमालय के चित्रण में मनवीकरण।
⦁ भावसाम्यसुभद्राकुमारी चौहान भी करुणा से आकुल तान बनकर अपने प्रिय के प्राणों में बस जाना चाहती हैं
तुम कविता के प्राण बनो मैं ।
उन प्राणों की आकुल तान।
निर्जन वन को मुखरित कर दे
प्रिय ! अपना सम्मोहक गान ॥