जिला परिषदों के कार्य-क्षेत्र के अन्तर्गत जिले का सम्पूर्ण ग्रामीण क्षेत्र आता है। इन परिषदों के मुख्य कार्य सड़कों का निर्माण व मरम्मत, शिक्षा की व्यवस्था, मानव, व पशु चिकित्सालयों की व्यवस्था, दुर्भिक्ष निवारण कार्य, विश्रामगृहों की स्थापना, प्रशिक्षण व्यवस्था, मेलों पर नियन्त्रण, बाजार आदि की व्यवस्था, सफाई आदि हैं।
जिला परिषद् की आय के स्रोत
जिला परिषद् की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –
1. भूमि उप-कर – जिला परिषदों की आय का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत भूमि उप-कर है। यह मालगुजारी पर अधिभार होता है, जिसको राज्य सरकारें स्थानीय संस्थाओं के लिए एकत्रित करती हैं। उत्तर प्रदेश में इस उप-कर को मालगुजारी में विलीन कर दिया गया है और इसके बदले में राज्य सरकार जिला परिषदों को क्षतिपूर्ति अनुदान देती है।
2. सम्पत्ति कर – यह मनुष्य की कुल सम्पत्ति अथवा आय के आधार पर लगाया जाता है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है।
3. महसूल या मार्ग शुल्क – जिला परिषद् नदी के घाट, पुल, सड़क एवं तालाबों पर कर (महसूल) | लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन से इन पुलों, सड़कों या घाटों से आते-जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।
4. काँजी हाउस – आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए जिला परिषद् कॉजी हाउस की व्यवस्था करती | है। इसमें आवारा घूमने वाले पशुओं को बन्द कर दिया जाता है और पशु मालिकों से जुर्माना लेकर ही पशुओं को छोड़ा जाता है।
5. किराया व शुल्क – जिला परिषद् सराय, हाट, डाक बंगले, मकान, दुकान आदि से किराये के रूप में तथा संस्थाओं व चिकित्सालयों से फीस के रूप में आय प्राप्त करती है।
6. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की आदि से अनुज्ञा-पत्र जारी करके शुल्क प्राप्त करती है।
7. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्धन जिला पंचायत को करना पड़ता है। इसके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है, वह जिला परिषद् को मिल जाती है।
8. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला परिषद् खाद, बीज, कृषि-यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में उसे कुछ आय प्राप्त होती है।
9. सरकारी अनुदान – राज्य सरकार जिला परिषदों को पर्याप्त मात्रा में आर्थिक अनुदान (Grant) शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती है। यह जिला परिषदों की कुल आय का40% तक होता है।
जिला परिषद की व्यय की मदें
जिला परिषदों के व्यय की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –
1. शिक्षा – जिला परिष0द् ग्रामीण क्षेत्रों में प्राइमरी तथा जूनियर हाईस्कूल तथा वाचनालयों की व्यवस्था करती है। इस मद पर जिला परिषद् की आय का एक बड़ा भाग व्यय हो जाता है।
2. चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर व्यय – जिला परिषद् ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों एवं जच्चा- बच्चा गृहों की व्यवस्था करती है तथा संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए नि:शुल्क टीके लगवाती है।
3. पशु चिकित्सालय – जिला परिषद् पशुओं की चिकित्सा के लिए पशु चिकित्सालयों की स्थापना | करती है।
4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला परिषद् घाटे व गाँवों में सड़कें बनवाने, तालाब व कुएँ खुदवाने, वृक्ष लगवाने, पुलों का निर्माण करने तथा इन सबकी मरम्मत कराने में पर्याप्त व्यय करती है।
5. प्रशासन व कर वसूली – जिला परिषद् अपने कार्यालय की व्यवस्था करने, अपने कर्मचारियों को वेतन देने व कर वसूलने में पर्याप्त व्यय करती है।
6. पंचायतों को सहायता – जिला परिषद् अपने क्षेत्र की ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा उनके विकास के लिए आर्थिक अनुदान देती है।
7. मेले व प्रदर्शनियाँ – जिला परिषद् अपने क्षेत्र में मेले व प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर पर्याप्त व्यय करती है।
8. अन्य मदें – जिला परिषद् दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती है, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती है, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती है तथा पशुओं के रोगों की रोकथाम की व्यवस्था करती है। जिला परिषद् कभी-कभी जिले के आर्थिक विकास के लिए ऋण भी ले लेती है, जिस पर उसे ब्याज भी देना पड़ता है।