‘पुनर्मिलन’ कविता जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘कामायनी’ नामक महाकाव्य का एक अंश है। जल-प्रलय से बचे हुए मनु और श्रद्धा साथ-साथ रहने लगे। श्रद्धा अपनी भावी सन्तान के लिए वस्त्र बुनने लगी। मनु को यह अच्छा न लगा और वे श्रद्धा को छोड़कर भाग गये। एक रात स्वप्न में श्रद्धा ने मनु को घायल और मूर्च्छित अवस्था में देखा। श्रद्धा उनकी खोज में अपने पुत्र को साथ लेकर चल पड़ी। इस कविता का सारांश निम्न पंक्तियों में प्रस्तुत है –
सारांश- रात्रि के समय श्रद्धा अपने पुत्र के साथ यह कहती हुई जा रही थी कि कोई मुझे यह बता दे कि मेरा प्रिय कहाँ है? वह मुझसे रूठकर चला आया था और मैं उसे मना नहीं पायी थी। ‘इड़ा’ इन शब्दों को सुनकर उठी और उसने सड़क पर शिथिल शरीर और अस्त-व्यस्त वस्त्रों को पहने हुए श्रद्धा को देखा। उसका पुत्र कुमार उसकी अँगुली पकड़े हुए था। |
इड़ा उसकी ऐसी दशा देखकर बोली कि तुम्हें किसने बिसराया है? तुम बैठो और मुझे अपनी कथा सुनाओ। श्रद्धा, इड़ा के साथ जलती हुई अग्नि के पास पहुँची। उसने वहाँ मनु को देखा। वह वहाँ पहुँच गयी और बोली, मेरा स्वप्न सच्चा निकला है। अरे प्रिय ! तुम्हारा यह क्या हाल है? वह मनु के पास बैठकर उसे सहलाने लगी, जिससे मनु की मूच्र्छा दूर हो गयी और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं । जैसे ही दोनों की आँखें चार हुईं, उनकी आँखों में आँसू आ गये। इस समय कुमार राजमहल की ओर देख रहा था। श्रद्धा ने उसे पुकारकर कहा कि तेरे पिता यहाँ हैं। तू भी यहाँ आ जा। वह पिता-पिता कहते हुए वहाँ आया और बोला कि हे माँ ये प्यासे होंगे। तू इनको पानी पिला। इस प्रकार वहाँ सबका मिलन हो गया।