श्रद्धा अपने पुत्र के साथ मनु को खोजती चली जा रही है। वह लोगों से उनका पता पूछ रही है और पश्चात्ताप कर रही है कि यदि मैं उन्हें मना लेती तो सम्भवतः वे न जाते । इड़ा उसकी आवाज सुनकर चौंक जाती है। वह देखती है कि पथ पर अस्त-व्यस्त वस्त्रों में एक युवती चली आ रही है। उसके साथ एक किशोर भी है। इड़ा ने उसके रोने का कारण पूछा। तभी श्रद्धा को घायल अवस्था में लेटे हुए अपने पति मनु दिखायी पड़े। उन्हें देखते ही श्रद्धा की आँखों में आँसू बहने लगे। जब श्रद्धा ने अपने हाथों से मनु को सहलाया तो उनमें चेतना आयी। श्रद्धा को अपने पास देखकर उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ।
उनका पुत्र यज्ञ भूमि के ऊँचे मन्दिर, यज्ञ मण्डप और यज्ञ की वेदी को देख रहा था, तभी श्रद्धा ने कहा-‘देख पुत्र! तेरे पिता यहाँ हैं। यह सुन कर वह दौड़कर पास आ गया तथा अपनी माँ से अपने पिता को जल पिलाने के लिए कहा। उसी समय सारा मण्डप नवनिर्मित परिवार की प्रसन्नता से भर उठा।