रूस में जार का शासन तानाशाही शासन का प्रतिरूप था। जार निकोलस द्वितीय एक भ्रष्ट, दमनकारी एवं स्वेच्छाचारी शासक था। रूस में जार द्वारा जनसामान्य की उपेक्षा ने ही लोगों की स्थिति को विपन्न बना दिया था। मजदूर और किसान आपस में विभाजित थे। किसान प्रायः लगाने देने से मना कर देते थे और कभी-कभी वे जमींदार की हत्या तक कर देते थे।
पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा किए गए लोकतांत्रिक प्रयोगों से प्रभावित होकर रूस के लोगों ने भी एक उत्तरदायी सरकार की माँग आरम्भ की, लेकिन जार ने उनकी माँग को अस्वीकार कर दिया। फलस्वरूप उदार सुधारक भी क्रान्ति की बातें करने लगे।
सन् 1904 का वर्ष किसानों के लिए बहुत ही दुष्कर था। आवश्यक वस्तुओं के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए थे तथा मजदूरी 20 प्रतिशत तक घट गयी थी। कामगार संगठनों की सदस्यता शुल्क नाटकीय तरीके से बढ़ा दी गयी। सेंट पीटर्सबर्ग के 1,10,000 से अधिक मजदूर प्रतिदिन काम के घण्टों को कम करने, मजदूरी बढ़ाने तथा कार्यस्थितियों में सुधार करने की माँगों को लेकर हड़ताल पर चले गए।
जनवरी, 1905 ई. में जोर से याचना करने के लिए एक रविवार को मजदूरों ने पादरी गैपॉन के नेतृत्व में एक शान्तिपूर्ण जुलूस निकाला। किन्तु जब यह जुलूस विंटर पैलेस पहुँचा तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया। परिणामस्वरूप 100 से अधिक मजदूर इस हमले में मारे गए जबकि इससे कहीं अधिक घायल हो गए। यह घटना खूनी रविवार के नाम से जानी जाती है जिसने घटनाओं की एक श्रृंखला को शुरू कर दिया जिसे 1905 की क्रान्ति के नाम से जाना जाता है।