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रूसी क्रान्ति के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।

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रूसी क्रान्ति के प्रमुख कारण : 19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्भिक एवं राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे। इनमें से ज्यादातर देश फ्रांस की भाँति गणतन्त्र थे और इंग्लैण्ड की भाँति संवैधानिक राजतंत्र। यूरोप के ज्यादातर देशों में प्राचीन सामंती अभिजात वर्ग के स्थान पर नवीन मध्यम वर्ग सत्तासीन हो गया था। लेकिन वह अभी भी पुरानी व्यवस्था में जी रहा था। इसी के चलते रूस में 1905 ई. और 1917 ई. में क्रान्ति घटित हुई। रूसी क्रान्ति के लिए निम्न परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
(1) विचारकों का प्रभाव- अनेक रूसी विचारक यूरोप में हो रहे परिवर्तनों से बहुत प्रभावित हुए। वे उसी तरह के परिवर्तन रूस में भी चाहते थे। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने किसानों में जागृति लाने और मजदूरों में संगठित होने की विचारधारा का प्रसार किया। रूस की  तत्कालीन स्थितियों में एक नरमपंथी, जनतंत्रवादी अथवा सुधारक को भी क्रांतिकारी बनने के लिए मजबूर होना पड़ा। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के दौरान जनता के पास जाओ’ नामक एक आन्दोलन आरम्भ हुआ। यूरोप के उदार विचारों ने भी रूसी-क्रांति लाने में बड़ा योगदान दिया।
भौतिक क्रांति से पहले रूसी जनता के विचारों में क्रांति हुई। जार के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पश्चिम के उदार विचारकों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। विभिन्न रूसी लेखकों जैसे टालस्टाय, टर्जने आदि ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी और वे पश्चिमी देशों के लोगों को प्राप्त सुविधाओं और अधिकारों की माँग करने लगे। जार ने जब उन्हें ठुकराने की कोशिश की तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया।
(2) 1904-05 ई. में रूस-जापान युद्ध- 1904-05 ई. के रूसी-जापानी युद्ध में रूस की हार हुई। छोटे से देश से हारने के कारण जनता जार के शासन की विरोधी बन गई; क्योंकि उसको विश्वास हो गया कि इस हार का
एकमात्र कारण जार की निर्बल और अयोग्य सरकार है जो युद्ध का ठीक प्रकार संचालन करने में असफल रही है।
(3) प्रथम विश्व युद्ध में हुई क्षति- प्रथम विश्व युद्ध में रूस की सेना की कई मोर्चे पर पराजय हुई। इस युद्ध में रूस के 60 लाख सैनिक मारे गए। रूस के लोग युद्ध को चालू रखने के पक्ष में नहीं थे। लगभग समस्त देशवासियों और विशेषकर सैनिकों में युद्ध को लेकर आक्रोश व्याप्त था।
(4) निरंकुश राजतंत्र- रूस की राजनैतिक स्थिति अक्टूबर क्रान्ति से बहुत अच्छी नहीं थी। चूँकि रूस में लम्बे समय से जार का निरंकुश, स्वेच्छाचारी, अत्याचारी, अकुशल और शोषक शासन अस्तित्व में था, ऐसे में रूस में क्रान्ति का घटित होना अवश्यम्भावी नहीं था। क्रांति से पूर्व रूस में शासन पर भ्रष्ट जमींदारों, शाही परिवार के लोगों, अमीरों एवं सैनिक अधिकारियों का प्रभुत्व था। कहने को तो रूस का साम्राज्य बहुत बड़ा था लेकिन इसमें गैररूसी जनता पर और भी अधिक अत्याचार होते थे।
जार को शेष जनता की भावनाओं का कोई आदर नहीं था। वस्तुतः शासकों व शासितों के मध्य अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जा रहा था। अतः जनता में असंतोष की सभी सीमाएँ पार हो गई थीं। रूस के जार पूरी तरह निरंकुश व स्वेच्छाचारी थे। उन्होंने समय-समय पर जो परामर्शदात्री सभाएँ बनाईं, उनके विचारों को मानने के लिए वे बाध्य नहीं थे। जापान से परास्त हो जाने के बाद निकोलस द्वितीय को ड्यूमा  नामक संसद के गठन के लिए मजबूर होना पड़ा किन्तु वह वास्तव में जनता तथा विशेषतः समाज के दुर्बल वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। दूसरे
इसकी शक्तियाँ सीमित थीं। सम्राट इसके निर्णय से बँधा हुआ नहीं था।
वह पूर्ववत् निरंकुश शासक बना रहा। जब कभी जार के शासन के विरुद्ध जन-आंदोलन उठे, उन्हें निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया। जार दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखती था। वह और उसकी बुद्धिहीन पत्नी भोग-विलास में डूबे थे। जनसाधारण को कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे।
(5) किसानों की विपन्न दशा- रूस में किसानों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। रूस में 1861 ई. से पहले। सामन्तवादी व्यवस्था अस्तित्व में थी। अधिकांश किसान भूमि दासों या सर्फ के रूप में जमीन जोता करते थे। उन्हें अपनी उपज का एक बहुत बड़ा हिस्सा सामंतों को देना पड़ता था। यद्यपि 1861 ई. में सामंत-प्रथा समाप्त कर दी गई तो भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उनके खेत बहुत छोटे  होते थे जिने पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। उन पर लगे करों को बोझ भारी थी इसलिए वे सदा ऋण से दबे रहते थे। सच तो यह है कि उन्हें दो समय का भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता था। रूस में जमीन के लिए किसानों की भूख असंतोष का एक प्रबल सामाजिक कारण था।
(6) श्रमिकों की विपन्न दशा- औद्योगिक क्रान्ति के कारण रूस में अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी थी, जिनमें लाखों मजदूर काम करते थे किन्तु मजदूरों की आर्थिक स्थिति और उनके कार्यस्थल की दशाएँ अत्यन्त शोचनीय थीं। ऐसी दयनीय स्थिति से बचने के लिए मजदूर एक होने लगे। उन्होंने श्रम संघों का निर्माण शुरू किया। परन्तु पूँजीपति व उनके इशारों पर चलने वाली सरकार ने 1900 ई. में श्रम संघ बनाने एवं हड़ताल करने पर रोक लगा दी। उन्हें न तो कोई राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे और न ही उन्हें सुधारों की कोई उम्मीद थी।
(7) 1905 ई. की क्रान्ति- 9 जनवरी, 1905 को रविवार के दिन मास्को में जनसाधारण ने अपनी 11 सूत्रीय माँगों के साथ एक जुलूस निकाला। प्रदर्शनकारियों का उद्देश्य इन 11 सूत्रीय माँगों को जार के महल तक जाकर उसे जार को सौंपना था। “छोटे भगवान! हमें रोटी दो।” के नारे के साथ ये लोग जार के महल की ओर बढ़ रहे थे, किन्तु जार ने इनसे बात करना तो दूर इन पर गोली चलवा दी। लगभग 1,000 प्रदर्शनकारी मारे गए तथा 60,000 गिरफ्तार कर लिए गए। रूस की सड़कों पर इस दिन बहुत रक्तपात हुआ। इसीलिए 9 जनवरी, 1905 ई. का रविवार का दिन रूसी इतिहास में खूनी रविवार के नाम से प्रसिद्ध है।
अनेक इतिहासकारों की राय है कि यद्यपि 1905 ई. की क्रांति को कुचलने में जार कामयाब रहा लेकिन इस क्रांति ने अक्टूबर, 1917 ई. की क्रांति के लिए उचित वातावरण तैयार करने में अहम् भूमिका अदा की। इस दिन हुए हत्याकांड से सारे रूस में रोष फैल गया। क्रांतिकारियों के समर्थन में जगह-जगह बन्द आयोजित किए गए और हड़ताले हुईं। इस क्रांति के कारण शिक्षित वर्ग के लोग भी क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। इसीलिए 1905 ई. की क्रांति को कई बार 1917 ई. की क्रांति की जननी भी कहा जाता है।

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