किसी विशेष वातावरण में सुगमतापूर्वक जीवन व्यतीत करने एवं वंश वृधि के लिए जीवों के शरीर में रचनात्मक एवं क्रियात्मक स्थायी परिर्वतन उत्पन्न होने की प्रक्रिया अनुकूलन कहलाती है। मरुस्थलीय क्षेत्र के पौधे अपने वातावरण में अनुकूलित रहने के लिए वाष्पोत्सर्जन द्वारा प्रानी की कमी को रोकने के लिए काँटों के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। जड़ें पानी की तलाश में गहराई तक चली जाती हैं। और तना चपटा व गूदेदार हो जाता है।