लेखक और उनके मित्रों को बस तक छोड़ने आए लोगों के मन में यह भाव आ रहे थे कि जैसे वे उन्हें अंतिम बार देख रहे हों और अंतिम विदा दे रहे हों। उनकी आँखें जैसे कह रही थीं- आना-जाना तो लगा ही रहता है। आया है, तो जाएगा-राजा, रंक फकीर। आदमी को कूच करने के लिए एक निमित्त चाहिए।