“उत्सर्ग की ऐसी भावना दुर्लभ है।” लेखक ने यह बात बस कंपनी के हिस्सेदार के लिए कही है। हिस्सेदार बस के टायरों की हालत जानता था फिर भी उसने टायर नहीं बदलवाया और धन कमाने के चक्कर में बस को चलाता रहा। उसे यह भी पता था कि इन टायरों की वजह से बस कभी भी दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है फिर भी वह यात्रियों के साथ-साथ अपनी जान की परवाह न करते हुए बस में सफर कर रहा था। धन के प्रति उसकी लोलुपता पर कटाक्ष करते हुए लेखक ने ऐसा लिखा है।