(क) सामाजिक स्वच्छता- सामाजिक स्वच्छता से तात्पर्य आस-पड़ोस की स्वच्छता से है। दूसरे शब्दों में आस-पास की पूर्ण सफाई ही सामाजिक स्वच्छता है। इसके अन्तर्गत गलियों-सड़कों की सफाई, नदियों, तालाबों व जलाशयों की साफ-सफाई, सार्वजनिक स्थल (जैसे- अस्पताल, रेलवे स्टेशन, विद्यालय, पार्क आदि) की स्वच्छता आवश्यक है। यह हमारा दायित्व है कि हम अपने परिवेश को साफ-सुथरा रखें। यदि कोई व्यक्ति वातावरण को दूषित करता है तो उसे जागरूक करना भी हमारा परम कर्तव्य है।
(ख) सूखा एवं गीला कचरा- शाक-सब्जियों व फलों का कचरा, जीवों का मल-मूत्र आदि सब गलकर संड़ते रहते हैं इन्हें गीला कचरा कहते हैं। शाक-सब्जियों के छिलके, सड़ी-गली सब्जियाँ, खराब फल, छिलके, फलों का रस निकालने के बाद शेष गूदा आदि गीले कचरे के उदाहरण हैं। पॉलीथीन, प्लास्टिक की बनी वस्तुएँ, रबर की बनी वस्तुएँ (टायर, टूटे खिलौने) बिस्कुट, नमकीन आदि खाद्य सामग्रियों के फाइबर के डिब्बे, पैकेट आदि आसानी से नष्ट नहीं होते हैं, इन्हें सूखा कचरा कहते हैं। प्रत्येक नागरिक को यह ध्यान रखना चाहिए कि गीले कचरे को नीले रंग के कूड़ेदान और सूखे कचरे को हरे रंग के कूड़ेदान में ही डालना चाहिए।
(ग) कम्पोस्ट पिट- किसी मैदान में एक गड्ढा खोदें। इस गड्ढे में सबसे नीचे कुछ महीन कंकड़ बिछा दें। इसके बाद विद्यालय व घर से निकला कचरा इसमें डाल कर ढंक दें। इसे नम रखने के लिए सप्ताह में एक या दो बार गड्ढे में पानी डालें, इस तरह तीन से चार माह में कचरे से खाद बन कर तैयार हो जाएगी। इसका प्रयोग विद्यालय के बगीचों में किया जा सकता है।
(घ) क्लीन सिटी ग्रीन सिटी योजना- जीवन में जितना जल और भोजन का महत्त्व है उतना ही स्वच्छता का भी है। बिना स्वच्छता के हम स्वस्थ्य नहीं रह सकते। भारत को स्वच्छ रखने के परियोजना से हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 2 अक्टूबर 2014 को इसे शुरू किया। जिसका उद्देश्य 20 अक्टूबर 2019 तक भारत के हर एक घर में शौचालय होना, गीले और सूखे कचरे को कम्पोस्ट करना, गाँव-गाँव में साफ पानी उपलब्ध करना है।