वाणिज्य अर्थात् व्यापार एवं व्यापार की सहायक सेवाएँ । वाणिज्य के लक्षण निम्नलिखित हैं :
- विनिमय : वाणिज्य का प्रारम्भ व्यापार से होता है । व्यापार में चीज़-वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है । वस्तु या सेवा के विनिमय की प्रवृत्ति नियमित रूप से होनी चाहिए ।
- सहायक सेवाएँ : वाणिज्य में व्यापार में सहायक सेवाओं का समावेश होता है । जैसे – बैंक, बीमा, गोदाम, वाहन-व्यवहार, संदेशाव्यवहार, एजेन्ट इत्यादि ।
- आर्थिक प्रवृत्ति : वाणिज्य की प्रवृत्ति एक आर्थिक प्रवृत्ति है, आर्थिक प्रवृत्ति में वित्तीय आय प्राप्त की जाती है । व्यापार में लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है । जैसे माल के संग्रह के बदले किराया लिया जाता है ।
- सेवा का सातत्य : वाणिज्य के विकास का आधार उसकी सहायक सेवाओं से है, ये सेवाएँ सतत एवं नियमित प्राप्त होनी चाहिए । जैसे रेलवे, बैंक, बीमा कम्पनी इत्यादि ।
- योग्य कीमत : आनुषंगिक सेवाओं की कीमत चीज़-वस्तु की कीमत की तुलना में योग्य एवं कम होनी चाहिए ।
- मांगलक्षी : वाणिज्य की सेवाएँ मांगलक्षी होनी चाहिए । अगर सहायक सेवाएँ मांगलक्षी न हो तो वाणिज्य का विकास नहीं हो सकता ।
- समय तथा स्थल की उपयोगिता में वृद्धि : वाणिज्य की प्रवृत्ति द्वारा वस्तुओं की स्थल-उपयोगिता तथा समय-उपयोगिता में वृद्धि होती है । जैसे नदी में पड़ी हुई रेत वाहन-व्यवहार की सेवा द्वारा भवन-निर्माण-स्थल तक लाने से उसकी स्थल उपयोगिता में वृद्धि होती है ।
गरम कपड़े का उत्पादन वर्ष भर होता है । किन्तु उसे संग्रह करके सर्दी की ऋतु में बाज़ार में रखने से उसकी समय उपयोगिता में वृद्धि होती है ।