व्यवहारों की दोहरी असर अथवा द्विअसर का ख्याल (Dual Aspect Concept) : द्विलेखा नामा पद्धति के मूलभूत हिसाबी प्रणालिका के रूप में इसे जाना जाता है । इस ख्याल के अनुसार प्रत्येक व्यवहारों की हिसाब में दो असर दी जाती है, (i) लाभ देनेवाला और (ii) लाभ प्राप्त करनेवाला । जैसे : 20,000 रु. का यंत्र रोकड़ से खरीदा । इस व्यवहार में रु. 20,000 का यंत्र आता है और बदले में रु. 20,000 की रोकड़ जाती है । अगर यंत्र की उधार खरीदी की गई हो तब यंत्र प्राप्त होता है और उतनी ही राशि भविष्य में चुकाने की जिम्मेदारी उपस्थित होती है । इस प्रकार ‘प्रत्येक प्राप्त करनेवाला देनेवाला है’ और ‘प्रत्येक देनेवाला प्राप्त करनेवाला है ।’ प्रत्येक व्यवहार की दोहरी असर देने के लिये ‘उधार’ और ‘जमा’ इन शब्दों का उपयोग किया जाता है । हिसाबी पद्धति का यह ढाँचा द्विअसर के ख्याल के आधार पर रचित है ।
प्रत्येक व्यवहार की कुल उधार असर और जमा असर तथा उसकी खतौनी हमेशा समान ही होती है । नामा पद्धति की रचना के समय दोनों असर दी जाती है उसे द्विनोंधी नामा पद्धति कहते हैं ।
प्रत्येक इकाई में रहे हुए आर्थिक संसाधन संपत्ति कहलाते है । इस संपत्ति के सामने विविध पक्षकारों द्वारा लगाई गई पूँजी और जिम्मेदारी को शामिल किया जाता है । पूँजी यह व्यवसाय की संपत्ति के सामने का मालिक का दायित्व है । व्यक्तिगत मालिकी में उसे मालिकी की पूँजी, साझेदारी में साझेदारों की पूँजी, कंपनी स्वरूप में उसे मालिकों की पूँजी अथवा अंशधारकों की पूँजी के रुप में जाना जाता है । जिम्मेदारी यह लेनदारों का व्यवसाय की संपत्ति के सामने का एक है । इस प्रकार धंधे की सभी संपत्ति पर लेनदार और मालिकी का हक होने से ऐसे हक की राशि संपत्ति से अधिक नहीं हो सकती ।
हिसाबी समीकरण में उसे निम्न अनुसार दर्शाया जायेगा :
संपत्ति = जिम्मेदारी + पूँजी
A = L + C जिसमें A = Assets
L = Liabilities
C = Capital