‘पुष्प की अभिलाषा’ देश प्रेम की कविता है, जिसमें पुष्प परमात्मा से प्रार्थना करता है कि उसे बलिदानी वीरों के कदमों पर न्योछावर किया जाए। कवि पुष्प की इच्छा बताते हुए लिखता है कि वह यह नहीं चाहता कि उसे देवताओं की कन्याओं के गहनों में पिरोया जाए अथवा प्रेमी की माला में पिरोया जा कर प्रेमिका को मुग्ध करे। वह सम्राटों के शवों पर भी नहीं गिरना चाहता और न ही देवताओं के मस्तक पर बैठकर अहंकारी बनना चाहता है। वह चाहता है कि उसे तोड़ कर उस रास्ते पर फेंक दिया जाए जिस रास्ते से मातृभूमि पर अपना बलिदान देने अनेक वीर जा रहे हों।