‘बुद्धि बल’ पाठ में लेखक ने छत्रपति शिवाजी की बुद्धिमत्ता की एक घटना का वर्णन किया है जिस का सन्देश यह है कि बुद्धि के प्रयोग से बड़ी-से-बड़ी मुसीबत से भी बचा जा सकता है। मुग़लों के समय की यह घटना है। एक दिन औरंगज़ेब ने अपने सेनापति दिलेर खाँ को शिवाजी को जीवित पकड़कर दरबार में लाने के लिए कहा तो उसने यह कार्य राजा जयसिंह से करवाने के लिए कहा। उसका मानना था कि हिन्दू होने के कारण शिवाजी जयसिंह की इस बात पर विश्वास कर लेंगे कि एक बार उनके आगरे के दरबार में आने से उन्हें स्वतंत्र राजा मान लिया जाएगा। शाइस्ता खाँ या अफज़ल खाँ का यकीन वे उनके मुसलमान होने के कारण नहीं करेंगे। औरंगज़ेब ने जय सिंह के साथ दिलेर खाँ को भी एक बहुत बड़ी सेना के साथ शिवाजी को लाने के लिए भेज दिया।
छत्रपति शिवाजी अफजल खाँ और शाइस्त खाँ की सेनाओं से पराजित तो नहीं हो सके थे परन्तु जयसिंह की बातों पर विश्वास कर औरंगजेब के दरबार में जब आ गए थे तो औरंगजेब ने उन्हें ‘पहाड़ी चूहा’ कह कर दिलेर खाँ से कह कर बन्दी बनाकर आगरे के किले में कैद करा दिया था। आगरे के किले के चारों ओर पूरी सेना तैनात कर दी गई थी, जिससे कोई बाहर न जा सके।
छत्रपति शिवाजी किले में कैद तो थे परन्तु वहाँ से निकलने के उपाय सोचते रहते थे। औरंगज़ेब ने उन्हें छल से बन्दी बनाया था इसलिए वे भी उसे छल से मात देना चाहते थे। अप्रैल का महीना था। इसी महीने शिवा जी का जन्म हुआ था। उन्होंने अपना जन्म दिन मनाने की घोषणा करते हुए कहा कि उन का जन्म दिन दस अप्रैल को है, जिसके उपलक्ष्य में वे दस दिन तक लोगों को फल-फूल, मिठाई-अन्न का दान करेंगे। औरंगज़ेब ने इस की आज्ञा दे दी। वे रोज़ दस-बीस बड़े-बड़े टोकरे फूल, फल, अन्न, मिठाई के मंगवाते और माँ भवानी की पूजा कर उन्हें छूकर बाहर बाँटने के लिए भेज देते। पहरेदार और उनके परिवार भी इन वस्तुओं का खूब आनन्द लेते। एक दिन शिवाजी मिठाई के टोकरे में छिप कर किले से बाहर निकल गए, जहाँ थोड़ी दूर पर एक तेज़ घोड़ा पहले से ही तैयार था, जिस पर सवार हो वे अपने किले में पहुँच गए। पहरेदारों ने जब उनकी कोठरी खाली देखी तो उनके होश उड़ गए।