‘माँ का लाल’ एक एकांकी है, जिसमें लेखक ने एक देशभक्त बालक के आत्म बलिदान द्वारा देश के लिए बलिदान देने की प्रेरणा दी है। रमा रसोई बना रही थी तभी उस का पन्द्रह वर्षीय बेटा माधव बाज़ार में सौदा लेकर आया। रमा ने उसके देर से आने का कारण पूछा तो उसने बाजार से लगी भीड़ में हो रही चर्चा के विषय में बताया कि गाँधी जी आठ अगस्त की रात को बन्दी बना लिए गए हैं। उनके साथ हज़ारों दूसरे लोग भी गिरफ्तार हुए हैं। रमा उसे यह सब छोड़ कर अपना काम करने के लिए कहती है। तभी पसीना-पसीना हुए माधव के पिता सोहन लाल आए और उन्होंने बताया कि रेलगाड़ी उड़ाने की अफवाह सुनकर वे लारी से आए थे। रमा ने रेल उड़ाने पर कहा कि रेलें तो सबकी हैं, उन्हें उड़ाने की क्या तुक है? सोहन लाल इससे परेशान सब की बात बताई और कहा कि इस बार ज़रूर अंग्रेज़ सरकार से लड़ाई होगी। माधव अपने बारे में जानना चाहता था कि वे किसके साथ थे ? रमा ने उसे झिड़ककर अपना काम करने के लिए कहा। दूसरे दृश्य में पार्टी के दफ्तर पर तिरंगा झंडा लगा हुआ था। माधव ने वहाँ जा कर सभापति से पूछा कि महात्मा जी करो या मरो का नारा देकर चले गए थे, वह क्या करे, यही पूछने आया था। सभापति ने अभी उसे पढ़ने-लिखने के लिए कहा तथा स्वयं वहाँ से चले जाना चाहा, क्योंकि वहाँ पुलिस के आने की उन्हें सूचना मिल चुकी थी।