18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने समस्त विश्व के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ढांचे पर अपना गहरा प्रभाव डाला। इससे लोगों के विचारों तथा जीवन-शैली में परिवर्तन आया, परिणामस्वरूप लोगों के पहनावे में भी परिवर्तन आया।
कपड़े का उत्पादन मशीनों से होने के कारण कपड़ा सस्ता हो गया और वह बाज़ार में अधिक मात्रा में आ गया। यह मशीनी कपड़ा होने के कारण अलग-अलग डिज़ाइनों में आ गया। इसलिए लोगों के पास पोशाकों की संख्या में वृद्धि हो गई। संक्षेप में आम लोगों के पहनावे पर औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।
1. रंग-बिरंगे वस्त्रों का प्रचलन– 18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुरूप कपड़े पहनते थे। पुरुषों व स्त्रियों के पहनावें में बहुत अंतर था। महिलाएं पहनावे में स्कर्ट और ऊंची एड़ी वाले जूते पहनती थीं। पुरुष पहनावे में नैक्टाई का प्रयोग करते थे। समाज के उच्च वर्ग का पहनावा आम लोगों से अलग होता था परंतु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के लोगों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों के लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार रंग-बिरंगे कपड़े पहनने लगे। फ्रांस के लोग स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लाल टोपी पहनते थे। इस प्रकार आम लोगों द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।
2. स्त्रियों के पहनावे में परिवर्तन-
- फ्रांसीसी क्रांति व फिजूल-खर्च रोकने संबंधी कानूनों से पहनावे में किए सुधारों को स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। 1830 ई० में इंग्लैंड में कुछ महिला-संस्थाओं ने स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग शुरू कर दी। जैसे ही सफरेज आंदोलन का प्रसार हुआ, तो अमेरिका की 13 ब्रिटिश बस्तियों में पहनावा-सुधार आंदोलन शुरू हुआ।
- प्रैस व साहित्य ने तंग कपड़े पहनने के कारण नवयुवतियों को होने वाली बीमारियों के बारे में बताया उनका मानना था कि तंग पहनावे से शरीर का विकास, मेरूदंड में विकार व रक्त संचार प्रभावित होता है। इसलिए बहुत सारे महिला-संगठनों ने सरकार से लड़कियों की शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पोशाकों में सुधारों की माँग की।
- अमेरिका में भी कई महिला-संगठनों ने स्त्रियों के लिए पारंपरिक पोशाक की निंदा की। कई महिला-संस्थाओं ने लंबे गाउन की अपेक्षा स्त्रियों के लिए सुविधाजनक परिधान पहनने की मांग की क्योंकि यदि स्त्रियों की पोशाक आरामदायक होगी, तभी वे आसानी से काम कर सकेंगी।
- 1870 ई० में दो संस्थाएं ‘नेशनल वूमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ ने मिलकर स्त्रियों के पहनावे में सुधार करने के लिए आंदोलन आरंभ किया। रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के कारण यह आंदोलन असफल रहा। फिर भी स्त्रियों की सुंदरता और पहनावे के नमूनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया।