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शारीरिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्य कौन-कौन से हैं ?

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शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education)किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पहले उसके उद्देश्य निर्धारित कर लेना आवश्यक है। बिना उद्देश्य के किया गया काम छाछ को मथने के समान है। उद्देश्य निश्चित कर लेने से हमारे यत्नों को प्रोत्साहन मिलता है और उस काम को करने में लगाई गई शक्ति व्यर्थ नहीं जाती है। आज तो शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य की जानकारी प्राप्त करना और भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि अब तो स्कूलों में एक विषय (Subject) के रूप में इसका अध्ययन किया जाता है।

साधारणतया शारीरिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • शारीरिक वृद्धि एवं विकास (Physical Growth and Development)
  • मानसिक विकास (Mental Development) (3) सामाजिक विकास (Social Development)
  • चरित्र निर्माण या नैतिक विकास (Formation of Character or Moral Development)
  • नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय (Neuro-muscular Co-ordination )
  • बीमारियों से बचाव (Prevention of Diseases)

1. शारीरिक वृद्धि एवं विकास (Physical Growth and Development)अच्छा, सफल तथा सुखद जीवन व्यतीत करने के लिए सुदृढ़, सुडौल तथा स्वस्थ शरीर का होना परमावश्यक है। हमारे शरीर का निर्माण मज़बूत हड्डियों से हुआ है। इसमें काम करने वाले सभी अंग उचित रूप से अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। शरीर के अंगों के सुचारु रूप से कार्य करते रहने से शरीर का निरन्तर विकास होता है। इसके विपरीत इनके भलीभान्ति काम न करने से शारीरिक विकास भी रुक जाता है। इस प्रकार शारीरिक प्रफुल्लता के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए शारीरिक शिक्षा सुखद वातावरण जुटाती है।

2. मानसिक विकास (Mental Development)- शारीरिक विकास के साथसाथ मानसिक विकास की भी आवश्यकता है। शारीरिक शिक्षा ऐसी क्रियाएं प्रदान करती हैं जो व्यक्ति के मस्तिष्क को उत्तेजित करती हैं। उदाहरणस्वरूप, बास्केटबाल के खेल में एक टीम के खिलाड़ियों को विरोधी टीम के खिलाड़ियों से गेंद (बॉल) को बचा कर रखना होता है तथा इसके साथ-साथ अपना लक्ष्य भी देखना पड़ता है । अपनी शक्ति का अनुमान लगा कर बॉल को ऊपर लगी बास्केट में भी डालना होता है। कोई भी खिलाड़ी जो शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट है, परन्तु मानसिक रूप में विकसित नहीं है, कभी भी अच्छा खिलाड़ी नहीं बन सकता है। शारीरिक शिक्षा मानसिक विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करती है। इसलिए खेलों में भाग लेने वाले व्यक्ति का शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी हो जाता है।

प्रायः शारीरिक रूप से अस्वस्थ तथा मानसिक रूप से सुस्त व्यक्ति बहुत ही भावुक हो जाते हैं। वे जीवन की साधारण समस्याओं को हंसी-हंसी में सुलझा लेने के स्थान पर उनमें उलझ कर रह जाते हैं। वे अपनी खुशी, गम, पसन्द तथा नफ़रत को आवश्यकता से कहीं अधिक महत्त्व देने लगते हैं और वे अपना कीमती समय तथा शक्ति व्यर्थ ही गंवा देते हैं। इस प्रकार कोई महान् सफलता प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। शारीरिक शिक्षा इन भावनाओं पर नियन्त्रण पाने की कला सिखाती है।

3. सामाजिक विकास (Social Development) शारीरिक शिक्षा व्यक्ति को अपने इर्द-गिर्द के लोगों के साथ सद्भावना से रहने की शिक्षा प्रदान करती है। जब एक व्यक्ति विभिन्न स्थानों के खिलाड़ियों के साथ मिल कर खेलता है तो सामाजिक विकास का अच्छा वातावरण पनपता रहता है। प्रत्येक खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के स्वभाव, रीति-रिवाज, पहनावा, सभ्यता तथा संस्कृति से भली-भान्ति परिचित हो जाता है। कई बार दूसरों की अच्छी बातें तथा गुण ग्रहण कर लिए जाते हैं। देखने में आता है कि यूनिवर्सिटी, राज्यीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर खेल मुकाबलों का आयोजन किया जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य लोगों में प्रेम तथा आदर की भावनाएं विकसित करना होता है।

4. चरित्र-निर्माण अथवा नैतिक विकास (Character Formation or Moral Development)-खेल का मैदान चरित्र-निर्माण की पाठशाला है। इसका कारण यह है कि खेल के मैदान में ही व्यक्ति खेल के नियमों को निभाते हैं। यहीं से वे अच्छा जीवन व्यतीत करने की कला सीखते हैं तथा सुलझे हुए इन्सान बन जाते हैं। खेल खेलते समय यदि रैफरी कोई ऐसा निर्णय दे देता है जो उन्हें पसन्द नहीं तो भी वे खेल जारी रखते हैं और कोई अभद्र व्यवहार नहीं करते। खेल के मैदान में ही आज्ञा-पालन, अनुशासन, प्रेम तथा दूसरों से सहयोग आदि के गुण सीखे जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र-निर्माण और नैतिक विकास होता है।

5. नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय (Neuro-muscular Coordination)-हमारी प्रतिदिन की क्रियाओं को समुचित ढंग से पूर्ण करना अनिवार्य है ताकि नाड़ियों और मांसपेशियों में समन्वय पैदा हो। शारीरिक शिक्षा इनमें समन्वय पैदा करने में सहायता देती है।

6. बीमारियों से बचाव (Prevention from Diseases) शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को बीमारी से बचाना भी है। बहुत-सी बीमारियां अज्ञानता के कारण लग जाती हैं। शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों की बीमारियों के कारणों का ज्ञान देना है। वे इन कारणों से बच कर स्वयं भी बीमारियों से बच सकते हैं।

अन्त में, हम कह सकते हैं कि शारीरिक शिक्षा मनुष्य के सर्वपक्षीय विकास के लिए, नागरिकता के लिए, मानवीय भावनाओं के निर्माण तथा राष्ट्रीय एकता के लिए बहुत ही उपयोगी है।

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