भागवत गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि जीवन में व्यक्ति तीन प्रकार की क्रियाओं का संपादन करता है –
- मन से (मनसा)।
- वाणी से (वाचा)।
- शरीर से (कर्मणा)।
इसी के आधार पर समाज में तीन प्रकार के कर्म पाए जाते हैं –
- संचित कर्म – वह कर्म जो व्यक्ति द्वारा पिछले जन्म में किया गया हो।
- प्रारब्ध कर्म – पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का फल जो वर्तमान में मनुष्य भुगत रहा है, प्रारब्ध कर्म कहलाता है।
- क्रियामान कर्म – वर्तमान समय में जो कर्म व्यक्ति कर रहा है, उसे उसका क्रियामान कर्म माना जाता है।