‘पुरुषैरीते पुरुषार्थ’ अर्थात् अपने अभीष्ट को प्राप्त करने के लिए उद्यम करना पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ का अभिप्राय उद्यम अथवा प्रयत्न करने से है। पुरुषार्थ जीवन का लक्ष्य है। जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना है। इसकी प्राप्ति के लिए धर्म, अर्थ व काम पुरुषार्थ, माध्यम है। गीता, उपनिषदों तथा स्मृतियों में भारतीय समाज में व्यक्ति के चार मूलभूत कर्त्तव्यों (दायित्त्वों) का उल्लेख मिलता है जो निम्न प्रकार से हैं –
- धर्म – धर्म, आचरण पर जोर देता है। धर्म आचरण संहिता के रूप में व्यक्ति को सन्मार्ग पर आगे बढ़ाता है।
- अर्थ – इसके अंतर्गत वे साधन, सम्पत्ति अथवा धन हैं जिनके माध्यम से हम अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम हो पाते हैं।
- काम – इसका अभिप्राय सभी प्रकार की इच्छाओं अथवा कामनाओं से है। इसके द्वारा समाज में निरंतरता को बनाए रखना आसान होता है।
- मोक्ष – मोक्ष का तात्पर्य है – हृदय की अज्ञानता का नाश है। इससे व्यक्ति जीवन मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।