कम्पनी की अंशपूँजी (Share Capital of a Company): कम्पनी एक कृत्रिम व्यक्ति होने के कारण अपनी पूँजी को स्वयं उत्पन्न नहीं कर सकती। अतः यह आवश्यक रूप से कुछ व्यक्तियों से एकत्रित की जाती है। ये व्यक्ति कम्पनी के अंशधारी कहलाते हैं तथा इनसे एकत्रित राशि एक कम्पनी की अंशपूँजी कहलाती है। चूँकि कम्पनी के अंशधारियों की संख्या बहुत अधिक होती है, इसलिए प्रत्येक के लिए अलग - अलग पूँजी खाता नहीं खोला जा सकता। अतः एकत्रित पूँजी के असंख्य भागों को और उसके अस्तित्व को एक सामान्य पूँजी खाता, जो कि अंशपूँजी खाता कहलाता है, में समायोजित कर दिया जाता है।
अंशपूँजी का वर्गीकरण लेखांकन की दृष्टि से कम्पनी की अंशपूँजी को निम्न प्रकार श्रेणीबद्ध किया जा सकता है-
(1) अधिकृत पूँजी (Authorised Capital): अधिकृत पूँजी, कम्पनी की अंशपूँजी की वह राशि है जो कि कम्पनी के सीमा पार्षद नियम के द्वारा निर्गमित करने हेतु अधिकृत है। कम्पनी सीमा पार्षद नियम में उल्लेखित पूँजी से अधिक राशि को एकत्रित नहीं कर सकती। यह प्राधिकृत या पंजीकृत पूँजी भी कहलाती है। अधिकृत पूँजी को कम्पनी अधिनियम में दी गई प्रक्रिया के अनुसार कम या ज्यादा किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि कम्पनी समस्त अधिकृत पूँजी को जनता में अभिदान के लिए एक ही समय में निर्गमित करने हेतु बाध्य नहीं है। कम्पनी अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अंशपूँजी निर्गमित कर सकती है, परन्तु किसी भी स्थिति में यह पूँजी अधिकृत पूँजी से अधिक नहीं हो सकती।
(2) निर्गमित पूँजी (Issued Capital): अधिकृत पूँजी का वह भाग जिसे जनता को अंश अभिदान के लिए वास्तविक रूप से प्रस्तावित किया जाता है उसे निर्गमित पूँजी कहते हैं। इसमें वे अंश भी सम्मिलित हैं जो परिसम्पत्ति विक्रेताओं को तथा कम्पनी के पार्षद सीमा नियम के हस्ताक्षरकर्ताओं को निर्गमित किए जाते हैं। अधिकृत पूँजी की वह राशि जो कि जनता में अभिदान नहीं की गई है अनिर्गमित पूँजी कहलाती है तथा इसे आगामी तिथि को किसी भी समय जनता में अभिदान के लिए निर्गमित किया जा सकता है।
(3) अभिदत्त पूँजी (Subscribed Capital): निर्गमित पूँजी का वह भाग जो जनता द्वारा वास्तविक रूप से अभिदत्त किया गया है, अभिदत्त पूँजी कहलाती है। जब अंशों का जनता द्वारा पूर्ण रूप से अभिदान होता है तो निर्गमित । पूँजी और अभिदत्त पूँजी समान होगी। यह ध्यान देने योग्य है कि अंततः, अभिदत्त पूँजी और निर्गमित पूँजी समान होती है क्योंकि यदि अभिदान के लिए अंशों की संख्या, निर्गमित संख्या से कम है तो कम्पनी केवल उन्हीं अंशों का आबंटन करेगी जिनके लिए अभिदान प्राप्त हो चुका है। किसी स्थिति में यदि अभिदत्त अंशों की संख्या, निर्गमित अंशों की संख्या से ज्यादा है तो आबंटित अंश, निर्गमित अंशों के समान होंगे। अधि अभिदान के तथ्य,पुस्तकों में प्रदर्शित नहीं किए जाते है।
(4) माँगी गई या याचित पूँजी (Called - up Capital): यह अभिदत्त पूँजी का वह भाग है जो कि अंशों पर माँगा जाता है। कम्पनी समस्त राशि .या अंशों पर अंकित मूल्य के भाग को माँगने का निर्णय ले सकती है। उदाहरण के लिए, यदि आबंटित अंशों का अंकित मूल्य (वास्तविक मूल्य) ₹ 10 है और कम्पनी ने केवल ₹ 7 प्रति अंश माँगा है तो इस स्थिति में माँगी हुई या याचित पूँजी केवल ₹ 7 प्रति अंश होगी। शेष ₹ 3 को अंशधारियों से किसी भी समय आवश्यकतानुसार माँगा जा सकता है।
(5) प्रदत्त पूँजी (Paid - up Capital): यह माँगी गई पूँजी का वह भाग है जो कि अंशधारियों से वास्तव में प्राप्त कर लिया गया है। जब अंशधारी समस्त माँग राशि का भुगतान कर देते हैं तब याचित पूँजी प्रदत्त पूँजी के समान होगी। यदि कोई अंशधारी मांगी गई राशि का भुगतान नहीं करता है तो यह राशि बकाया माँग कहलाती है। इसलिए प्रदत्त पूँजी, माँगी गई पूँजी में से बकाया माँग की राशि को घटाने पर प्राप्त होती है।
(6) अयाचित पूँजी (Uncalled Capital): अभिदत्त पूँजी का वह भाग जो कि अभी तक माँगा नहीं गया है, अयाचित पूँजी कहलाता है। जैसे कि पहले बताया जा चुका है, कम्पनी यह राशि किसी भी समय जब आवश्यकता हो, भविष्य के कोषों (निधियों) के लिए एकत्रित कर सकती है।
(7) आरक्षित पूँजी (Reserve Capital): एक कम्पनी द्वारा अयाचित पूँजी का एक भाग केवल कम्पनी के समापन की दशा के लिए आरक्षित किया जा सकता है। इस प्रकार की अयाचित राशि कम्पनी की 'आरक्षित पूँजी' कहलाती है। यह कम्पनी के समापन पर केवल लेनदारों के लिए उपलब्ध होती है।