वस्तु बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र वस्तु की माँग तथा पूर्ति को व्यक्त करते हैं। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग के सन्दर्भ में माँग का नियम लागू होता है तथा वस्तु की पूर्ति के सन्दर्भ में पूर्ति का नियम लागू होता है। अत: वस्तु बाजार में (चित्र में दिखाये अनुसार) माँग वक्र दायें नीचे को गिरता हुआ होता है जबकि पूर्ति वक्र ऊपर को उठता हुआ होता है।
श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र श्रम की माँग तथा पूर्ति को दर्शाते हैं। श्रम की पूर्ति से आशय श्रम के घण्टों से होता है। श्रम की माँग एक व्युत्पन्न माँग (Derived Demand) कहलाती है अर्थात् उसकी माँग किसी अन्य वस्तु के उत्पादन हेतु की जाती है। ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की माँग कम होती है तथा श्रम की पूर्ति बढ़ जाती है और नीचे मजदूरी दर पर श्रम की माँग अधिक हो जाती है तथा श्रम की पूर्ति में कमी। मजदूरी के एक निश्चित स्तर पर पहुँचने के बाद श्रमिक आराम करना पसंद करने लगता है तथा इसलिए श्रमिक के काम की तुलना में विश्राम के घण्टे बढ़ जाते हैं और इसी कारण से श्रम का पूर्ति वक्र पीछे की ओर मुड़ जाता है। जिसे निम्न चित्र में देखा जा सकता है –

श्रम बाजार तथा वस्तु बाजार में आधारभूत अन्तर उनके माँग तथा पूर्ति के स्रोतों से है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग परिवारों द्वारा की जाती है जबकि पूर्ति उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादकों/फर्मों द्वारा की जाती है। जबकि पूर्ति परिवारों द्वारा की जाती है। वस्तु बाजार में वस्तु से तात्पर्य वस्तु की मात्रा से होता है जबकि श्रम बाजार में श्रम से तात्पर्य श्रमिक द्वारा कार्य करने के लिए दिए जाने वाले घण्टों से होता है न कि श्रमिकों की संख्या से।