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मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा स्पष्ट करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डालिए।

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मुद्रा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Money) – मुद्रा अंग्रेजी के शब्द मनी (Money) का हिन्दी अनुवाद है। अंग्रेजी भाषा का शब्द मनी (Money) लैटिन भाषा के शब्द मोनेटा (Moneta) से बना है जो देवी जूनो (Juno) का ही नाम है। प्राचीन काल में देवी जूनो के मन्दिर में ही मुद्रा बनाई जाती थी इसीलिए इसका नाम मुद्रा (Money) पड़ा।। विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने मुद्रा को भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है।

इस कारण मुद्रा की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है।

1. वाकर (F.A. Walker) के अनुसार, “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।”

2. हार्टले विदर्स (Hartley Withers) के अनुसार, “मुद्रा वह सामग्री है जिससे हम वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं।”

3. नैप (Knapp) के अनुसार, “कोई भी वस्तु जो राज्य द्वारा मुद्रा घोषित कर दी जाती है, मुद्रा कही जाती है।”

4. सैलिगमैन (Seligmen) के शब्दों में, “मुद्रा वह वस्तु है जिसे सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।”

5. कैन्ट (Kent) के शब्दों में, “मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यत: विनिमय के माध्यम एवं मूल्य के मापक के रूप में स्वीकार किया जाता है।”

6. किनले (Kinley) के अनुसार, “मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसे सामान्यत: विनिमय के माध्यम अथवा मूल्य के मान के रूप में स्वीकार एवं प्रयोग किया जाता है।”

7. मार्शल (Marshall) के शब्दों में, “मुद्रा में वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित होती हैं जो किसी विशेष समय अथवा स्थान पर बिना संदेह अथवा विशेष जाँच पड़ताल के वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने और व्यय का भुगतान करने के साधन के रूप में, सामान्यत: प्रचलित होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्री मुद्रा की परिभाषा के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं, परन्तु यह भी स्पष्ट है कि मुद्रा कही जाने वाली वस्तु में मुद्रा के कार्य करने का गुण, सर्वमान्यता एवं वैधानिक स्वीकृति का गुण होना चाहिए। अत: मुद्रा की एक सही परिभाषा निम्न प्रकार हो सकती है –

“मुद्रा कोई ऐसी वस्तु है जिसे विनिमय के माध्यमे, मूल्य के मापक, मूल्य संचय एवं ऋणों के भुगतान के रूप में वैधानिक एवं सामान्य स्वीकृति प्राप्त हो।”

मुद्रा का महत्व (Importance of Money) वर्तमान आर्थिक जगत में मुद्रा महत्वपूर्ण स्थान रखती है। प्रो० मार्शल ने इसके महत्व को स्पष्ट करते हुए कहा है कि, “मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है। वर्तमान समय में मुद्रा के बिना अर्थव्यवस्था के संचालन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस महत्व के कारण ही वर्तमान युग को मुद्रा का युग कहा जाता है।

मुद्रा के महत्व को निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है

1. बाजार व्यवस्था की धुरी (Centre point of Market System) – मुद्रा ने बाजार व्यवस्था को सरल एवं गतिशील बना दिया है। यह विनिमय का एक सरल माध्यम है। इसलिए बाजार में सभी लेन-देन मुद्रा के माध्यम से ही किए जाते हैं।

2. आर्थिक विकास का मापक (Measure of Economic Development) – मुद्रा के द्वारा ही देश के आर्थिक विकास का मापन सरल हो गया है। सरकारें आर्थिक विकास की योजनाएँ बनाने एवं उन्हें क्रियान्वित करने में मुद्रा के कारण ही सक्षम हो सकी हैं। विभिन्न देशों के आर्थिक विकास की तुलना भी मुद्रा के कारण ही सम्भव हो सकी है।

3. श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण (Divison of Labour and Specialisation) – वर्तमान युग में बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है जिससे वस्तुओं की उत्पादन लागत कम आती है लेकिन यह कार्य श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के कारण ही सम्भव हुआ है। श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण को अपनाना बिना मुद्रा के सम्भव नहीं है।

4. निवेश का आधार (Basis of Investment) – मुद्रा के चलन ने बचत को सम्भव बनाया है। आज लोग अपनी वर्तमान आये से कुछ पैसा भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बचाते हैं और उसे बचाई हुई राशि को बैंक या अन्य वित्तीय संस्थाओं में जमा करके ब्याज भी प्राप्त करते हैं। वित्तीय संस्थाओं के पास इस प्रकार जो एक बड़ी राशि इकट्ठी हो जाती है उसे वह उद्योगों में लगाते हैं। व्यक्तिगत उपभोक्ताओं द्वारा भी सीधे औद्योगिक इकाइयों में पैसा लगाया जाता है। इस प्रकार बचत निवेश का आधार बनती है।

5. आर्थिक क्षेत्र में निर्णय की स्वतन्त्रता (Freedom of Decision in Economic Field) – मुद्रा ने उपभोक्ता एवं उत्पादक दोनों को ही बाजार में उचित निर्णय लेने में सक्षम बना दिया है। उपभोक्ता जहाँ अपने धन को इस प्रकार व्यय करता है कि उसे अधिकतम उपयोगिता मिल सके वहीं उत्पादक उत्पत्ति के साधनों पर इस प्रकार विवेकपूर्ण ढंग से व्यय करते हैं कि उनकी उत्पादकता अधिकतम हो सके।

6. सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार (Basis of Social Status) – मुद्रा मूल्य संग्रह का आधार होती है। जिस व्यक्ति के पास जितनी अधिक मुद्रा होती है उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी उतनी ही ज्यादा होती है। इस कारण मुद्रा सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार भी है।

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