सभी धर्मों के सामान्य विश्वास व मूल्य यद्यपि एक जैसे हैं किन्तु वे एक साथ आने को तैयार नहीं हैं। विभिन्न धर्मों के ज्ञान व मूल्य विज्ञान से भी ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक सत्य अधिक प्रामाणिक तब माना जाता है जब वह अन्य देशों में हुए शोधों से प्रमाणिक हो। जिस प्रकार विज्ञान के क्षेत्रों में कोई विदेशी या बाहरी नहीं होता, उसी प्रकार धर्म के क्षेत्र में भी कोई साम्प्रदायिकता नहीं होनी चाहिए। सभी धर्मों के मूल तत्वों को एक साथ इकट्ठा कर उसे जनकल्याण के लिए उपयोग में लाना चाहिए। यदि ऐसा हो तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि धर्म की स्थिति व प्रतिष्ठा एवं उसकी उपयोगिता विज्ञान के समान तथा लोकतन्त्र की आकांक्षाओं के अनुरूप हो सकती है।