सिन्धु सरस्वती सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीनतम सभ्यता थी। यह सभ्यता एवं संस्कृति विशुद्ध भारतीय है। इस सभ्यता का उद्देश्य, रूप और प्रयोजन मौलिक एवं स्वदेशी है। उत्खनन द्वारा जो पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई है उसके आधार पर सिन्धु सरस्वती सभ्यता का जो जीवन्त रूप व विशेषताएँ उभरकर सामने आयी हैं
वे निम्न प्रकार हैं
1. नगर योजना: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के विभिन्न स्थलों के उत्खनन से उत्कृष्ट नगर नियोजन के प्रमाण प्राप्त होते हैं। यहाँ के निवासी अपने निवास एक निश्चित योजना के अनुसार बनाते थे। शासक वर्ग के लोग दुर्ग में रहते थे तथा साधारण वर्ग के लोग निश्चित निचली जगह पर रहते थे। मकान निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था। प्रत्येक मकान में एक आँगन, रसोईघर, स्नानघर, द्वार आदि होते थे। नगरों में चौड़ी-चौड़ी सड़कें वे गलियाँ बनायी जाती र्थी जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। नगरों में गन्दे पानी के निकास की उचित व्यवस्था थी। इस सभ्यता में कई विशिष्ट भवन मिले हैं जो इस सभ्यता के उत्कृष्ट नगर नियोजन को दर्शाते हैं, जिनमें मोहनजोदड़ो का मालगोदाम, विशाल स्नानागार तथा हड़प्पा का विशाल अन्नागार प्रमुख हैं।
2. सामाजिक जीवन: सिन्धु सभ्यता के समाज में शासक व महत्वपूर्ण कर्मचारी वर्ग, सामान्य वर्ग, श्रमिक वर्ग एवं कृषक वर्ग था। समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार था। मातृदेवी की मिट्टी की प्राप्त मूर्तियों से समाज में नारी का महत्व व परिवार के मातृसत्तात्मक होने का प्रमाण मिलता है। यहाँ स्त्री और पुरुष दोनों ही आभूषण प्रेमी थे। एक मुद्रा पर ढोलक का चित्र बना है जो सिंधु-सरस्वती सभ्यतावासियों की वाद्य कला में रुचि को दर्शाता है।
3. धार्मिक जीवन: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के लोग धार्मिक विचारों के थे। ये मातृदेवी की पूजा करते थे तथा शिव की भी उपासना करते थे। इसके अतिरिक्त इन लोगों में वृक्षों तथा पशुपक्षियों की पूजा भी प्रचलित थी। इनके धार्मिक जीवन में पवित्र स्नान तथा जल पूजा का भी विशेष महत्व था।
4. आर्थिक जीवन: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि थी। ये लोग गेहूँ, जौ, चावल, चना, बाजरा, दाल एवं तिल आदि की खेती करते थे। कालीबंगा से जुते हुए खेत के प्रमाण मिले हैं। इस सभ्यता के लोगों का पश्चिमी एशिया के अनेक देशों के साथ व्यापार होता था। विदेशों से व्यापार के लिए जलमार्गों का प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के लोग उद्योग-धन्धों में भी संलग्न थे। मिट्टी व धातु के बर्तन बनाना, आभूषण बनाना, औजार बनाना आदि उद्योग विकसित अवस्था में थे। तोल के लिए बाटों का प्रयोग किया जाता था।
5. राजनीतिक जीवन: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के राजनैतिक जीवन की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। प्रशासनिक दृष्टि से साम्राज्य के चार बड़े केन्द्र रहे होंगे-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा व लोथल। सुव्यवस्थित नगर नियोजन स्वच्छता, जल संरक्षण आदि प्रतीकों से पूर्ण एवं कुशल राजसत्ता नियंत्रण तथा व्यवस्थित नगर पालिका प्रशासन के संकेत मिलते हैं। अस्त्र – शस्त्र अधिक संख्या में न मिलना यहाँ के निवासियों के शान्तिप्रिय होने की सूचना देते हैं।
6. लिपि: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के लोगों ने लिपि का भी आविष्कार किया। इस सभ्यता की लिपि भाषा चित्रात्मक थी। इस लिपि में चिन्हों का प्रयोग किया जाता था।
7. कला: सिन्धु सरस्वती सभ्यता के लोगों ने कला के क्षेत्र में बहुत उन्नति की थी। उत्खनन से प्राप्त मुहरों एवं बर्तनों पर आकर्षक चित्रकारी देखने को मिलती है। मिट्टी से बने मृदभाण्ड, मृणमूर्तियाँ, मुहर निर्माण, आभूषण बनाना आदि इनकी उत्कृष्ट कला प्रेम के उदाहरण हैं।