चोल नरेशों ने साम्राज्य की सुरक्षा एवं विजयों की दृष्टि से विशाल सेना का गठन किया जिसके प्रमुख तीन अंग थे-पदाति, अश्वारोही तथा गजारोही। चोलों की स्थायी सेना में पैदल, गजारोही, अश्वारोही आदि सैनिक शामिल होते थे। गजारोही दल को कुंजिर – मल्लर, अश्वारोही दल को कुदिरैच्चैवगर, बिल्लिगढ़ धनुर्धारी दल को, भाले से प्रहार करने में निपुण सैनिकों को सैगुन्दर एवं राजा के अंगरक्षकों को वेलैक्कोर कहते थे।
चोल सेना जिन छावनियों में रहती थी उन्हें कड़गम कहते थे। सेना का नेतृत्व करने वाले नायक तथा सेनाध्यक्ष को महादण्डनायक कहा जाता था। इनके अतिरिक्त चोलों के पास एक शक्तिशाली नौसेना भी थी। वे अपने जहाजों को व्यापारिक एवं सैनिक दोनों कार्यों के लिए प्रयुक्त करते थे। महाबलिपुरम् तथा कावेरी पट्टनम् मुख्य चोल बन्दरगाह थे। विशाल नौसेना द्वारा चोल शासकों ने श्रीलंका, मालद्वीव व लक्षद्वीप को विजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।