हर्ष पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी शासक हुआ। वह लगभग 606 ई. में थानेश्वर का शासक बना व उसने 647 ई. तक शासन किया। हर्ष ने लगभग समस्त उत्तरी भारत में विजय प्राप्त की एवं साम्राज्य का विस्तार किया।
साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से उसने अनेक महत्वपूर्ण सैनिक अभियान किये जो निम्नलिखित हैं|
1. वल्लभी के ध्रुवसेन से युद्ध – हर्ष ने 630 ई. से 633 ई. के बीच वल्लभी नरेश ध्रुवसेन द्वितीय बालादित्य को पराजित किया, जो चालुक्यों से युद्ध का पूर्व चरण था। बाद मे हर्ष ने वल्लभी से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया।
2. उत्तरी भारत के अन्य राज्यों की विजय – सौराष्ट्र में वल्लभी के अतिरिक्त हर्ष ने उत्तरी भारत के अन्य राज्यों पर भी अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयास किया।
3. बंगाल के शासक शशांक से युद्ध – हर्ष ने बंगाल के गौड़ों के विरुद्ध कार्यवाही की उस समय शशांक वहाँ का शासक था। हर्ष ने कामरूप के शासक भास्कर वर्मा के साथ समझौता किया जिससे गौड़ नरेश शशांक को कदम पीछे खींचना पड़ा।
4. दक्षिण के पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध – हर्ष व पुलकेशिन द्वितीय महत्वाकांक्षी शासक थे जिन्होंने साम्राज्यवादी नीति का अवलम्बन किया। दोनों राज्यों की सीमाएँ निकट होने के कारण उनके बीच युद्ध का उल्लेख ऐहोल प्रशस्ति में मिलता है। इस युद्ध में हर्ष की हार हुई।
5. उड़ीसा विजय – 640 ई. के आसपास ओडू, कांगोद एवं कलिंग पर विजय प्राप्त कर उड़ीसा पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् हर्षवर्धन ने बौद्ध सभा का आयोजन किया।
41 वर्ष के अपने शासन के दौरान हर्ष ने अपने राज्य में दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे-जालंधर, कश्मीर, नेपाल, वल्लभी, मालवा, सिंध, सीमान्त प्रदेश व असम को सम्मिलित किया। संयुक्त प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, मध्य भारत तथा राजपूताना हर्ष के प्रशासन के अधीन थे।