हर्ष एक महान् सेनापति, कला एवं साहित्य का संरक्षक, कर्ण जैसा दानी सम्राट था। उसने युग की प्रवृत्तियों के अनुरूप अपनी नीतियों को ढालने का प्रयत्न किया। हर्ष स्वयं व्यक्तिगत रूप से शासन प्रबन्ध देखता था। जनहित उसके राज्य का प्रमुख उद्देश्य था। सामंतशाही शक्तियों के नियंत्रण हेतु उसने भ्रमण किया तथा केन्द्रीय शासन को सुदृढ़ किया। भ्रमण एवं दान के माध्यम से हर्ष ने ग्रामीण विकास को गति प्रदान की तथा जनता से सीधा सम्पर्क स्थापित किया। इस प्रकार प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से हर्ष ने जनकल्याण व उत्पादन की शक्तियों को प्रोत्साहित किया।
हर्ष के समय तिब्बत-चीन तथा अन्य एशियाई देशों में भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ। चीन में हर्ष ने प्रतिनिधि मण्डल भेजा। हर्ष नालंदा विश्वविद्यालय का मुख्य संरक्षक था। इसके अतिरिक्त वल्लभी सहित अनेक गुरुकुल, आश्रम एवं शिक्षा के केन्द्र हर्ष के समय में विद्यमान थे। इस प्रकार हर्ष की उपलब्धियाँ व्यापक एवं बहुआयामी थीं। हर्षवर्धन सातवीं शताब्दी की भारतीय राजनीति का श्रेष्ठतम नायक था। एक श्रेष्ठ येद्धा, साम्राज्य निर्माता, कुशल प्रशासक, लोक कल्याणकारी ओर विद्यानुरागी शासक के रूप में सभी विद्वान उसकी प्रशंसा करते थे।
हर्ष ने युग की धाराओं को बदलने का एवं नई प्रवृत्तियों को जन्म देने का प्रयास किया तथा आजीवन लोककल्याणकारी कार्यों में संलग्न रहा, लेकिन वह पूर्णरूप से सफल नहीं रहा। इसका कारण उसकी अयोग्यता नहीं बल्कि ऐसी प्रवृत्तियों का उदय होना था, जिनके उत्थान व पतन के लिए एकमात्र व्यक्ति या युग विशेष रूप से उत्तरदायी नहीं होता है। इस प्रकार हर्ष को उसके श्रेष्ठ कार्यों के कारण एक कुशल प्रशासक कहा जा सकता है।