कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक था। कनिष्क के समय में कुषाण सत्ता अपने शिखर पर पहुँच गई थी। कनिष्क एक महान विजेता, कुशल प्रशासक एवं कला प्रेमी शासक था। कनिष्क जब सिंहासनारूढ़ हुआ तब उत्तराधिकार में उसे छोटा – सा राज्य मिला था। अपने पराक्रम के बल पर उसने अपना साम्राज्य पश्चिम में आक्सस नदी से पूर्व में गंगा नदी तक मध्य एशिया में खुरासन से लेकर उत्तर प्रदेश में वाराणसी तक विस्तृत कर लिया था।
एक महान योद्धा व साम्राज्य निर्माता होने के साथ-साथ कनिष्क कलाकारों तथा विद्वानों को आश्रयदाता था। हर्ष व अशोक की भाँति वह बौद्ध धर्म का प्रचारक एवं पोषक था। बौद्ध होते हुए भी कनिष्क ने अन्य धर्मों का आदर किया और धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन किया। उसके कार्यकाल के समय कुषाण काल अपने चरमोत्कर्ष पर था।
उसके शासन काल की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित थी
1. कनिष्क का शासन शकों की भाँति क्षेत्रप प्रणाली पर आधारित था। प्रत्येक प्रान्त क्षत्रप द्वारा शासित होता था
2. दण्डनायक और महादण्डनायक पद कुषाण प्रशासकीय मशीनरी के महत्वपूर्ण भाग थे।
3. कनिष्क ने कनिष्कपुर, पुरुषपुर, सिरमुख अरदि नगरों की स्थापना की तथा अनेक स्तूपों, विहारों का निर्माण कराया
4. कनिष्क ने महायान धर्म को राजाश्रय प्रदान किया तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षुओं को मध्य एशिया, चीन, तिब्बत, जापान आदि देशों में भेजा।
5. कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन नामक विहार में चतुर्थ बौद्ध संगीति का आयोजन किया जिसका अध्यक्ष वसुमित्र था
6. कनिष्क के काल में हुई चतुर्थ बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान दो शाखाओं में विभाजित हो गया
7. कनिष्क के काल में स्थल मार्गों एवं नदी मार्गों के विकास ने जहाँ आन्तरिक व्यापार में वृद्धि की वहीं समुद्री मार्गों ने विदेशी व्यापार को सुदृढ़ता प्रदान की।
8. कनिष्क के काल में भारत का व्यापार रोम, चीन, बर्मा, जावा, सुमात्रा, चम्पा आदि दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों के साथ भी था।
9. कनिष्क ने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलाए। मुद्रा एवं व्यापार के कारण देश में कई नगरों का विकास हुआ।
10. कनिष्क के काल में साहित्य, विज्ञान तथा कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई।
11. कनिष्क के शासनकाल में मूर्तिकला की तीन प्रमुख शैलियों का विकास हुआ – मथुरा, अमरावती एवं गान्धार
12. कनिष्क के काल में भारतीय ज्योतिष में नवीन सिद्धान्तों की स्थापना हुई और खगोल विद्या की वैज्ञानिक प्रामाणिकता बढ़ी।
13. कनिष्क ने 78 ई. में एक नया संवत् आरम्भ किया जो शक संवत् कहलाता है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि कनिष्क केवल एक महान विजेता ही नहीं वरन् एक कुशल प्रशासक भी था जिसके काल में प्रत्येक क्षेत्र (कला, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य, धर्म) में सराहनीय विकास हुआ।