प्लासी का युद्ध एक सैनिक झड़प से अधिक कुछ नहीं था। यह अंग्रेजों तथा बंगाल के धनी सेठों तथा मीर जाफर के मध्य किया गया एक सौदा था जिसमें बंगाल को अंग्रेजों के हाथ बेच दिया गया। 1757 ई. में हुए प्लासी के युद्ध ने बंगाल में अंग्रेजों की सत्ता स्थापित कर दी। इस युद्ध के पश्चात् बंगाल अंग्रेजों के शोषण का बुरी तरह शिकार हुआ। प्लासी के युद्ध के पश्चात् मीर जाफरे जो अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली था अंग्रेजों की बढ़ती हुई माँग को पूर्ण न कर सका और अपना पद खो बैठा।
इसके पश्चात् मीर कासिम को बंगाल को नवाब बनाया गया। मीर कासिम अंग्रेजों की शक्ति को अधिक बढ़ने से रोकना चाहता था। अतः उसने प्रशासनिक पुनर्गठन का प्रयास किया जिसमें ब्रिटिश हस्तक्षेप के कारण वह सफल नहीं हुआ। आर्थिक मामलों व विभिन्न सुविधाओं को लेकर अंग्रेजों व मीर कासिम के मध्य मतभेद बढ़ने का परिणाम 22 अक्टूबर, 1764 के बक्सर के युद्ध के रूप में सामने आया।
बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों के विरुद्ध बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला व मुगल सम्राट शाह आलम की सम्मिलित सेना थी। युद्ध का परिणाम अंग्रेजों के पक्ष में रहा। इस युद्ध ने प्लासी के निर्णयों पर मुहर लगा दी। राजनैतिक व सैनिक दृष्टि से इसका महत्व अधिक था। भारत में अब अंग्रेजों को चुनौती देने वाला कोई दूसरा नहीं रह गया था। अब बंगाल का नवाब इनकी कठपुतली था तो अवध का नवाब इनका आभारी तथा मुगल सम्राट इनका पेंशनर था।
इस युद्ध से इलाहाबाद तक का प्रदेश अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया तथा दिल्ली का मार्ग भी उनके लिए खुल गया। इलाहाबाद की सन्धि द्वारा बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार भी कम्पनी के पास चले गये। इस युद्ध ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अखिल भारतीय शक्ति बना दिया। अब वे सम्पूर्ण भारत पर दावा करने लगे थे। अतः स्मिथ का यह कथन सर्वथा उचित है कि “बक्सर के युद्ध ने प्लासी के अधूरे कार्य को पूरा किया।”