न्यायपालिका और अधिकार: न्यायपालिका को नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने का दायित्व सौंपा गया है। संविधान ऐसी दो विधियों का वर्णन करता है जिसमें सर्वोच्च न्यायालय अधिकारों की रक्षा कर सके। यह अनेक रिट (याचिका); जैसे-बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, उत्प्रेषण लेख, अधिकार पृच्छा लेख आदि जारी करके मौलिक अधिकारों को फिर से स्थापित कर सकता है; उच्च न्यायालयों को भी ऐसी रिट जारी करने की शक्ति है।
सर्वोच्च न्यायालय किसी कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर उसे लागू होने से रोक सकता है। ये दोनों प्रावधान एक ओर सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के मौलिक अधिकार के संरक्षक एवं दूसरी ओर संविधान के व्याख्याकार के रूप में स्थापित करते हैं। उपर्युक्त प्रावधानों में दूसरा प्रावधान न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था करता है।