73वें संविधान संशोधन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
(1) त्रिस्तरीय प्रणाली - 73 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारत के समस्त राज्यों के लिए त्रिस्तरीय संस्थागत ढाँचे का प्रावधान किया गया है। ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, खण्ड / ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति एवं जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन किया गया है।
(2) पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करना – 73वें संविधान संशोधन द्वारा भारत के संविधान में एक नए अध्याय के रूप में एक नया ‘भाग – 9’ पंचायत के शीर्षक के साथ अनुच्छेद 243 और एक नई 11वीं अनुसूची जोड़ दी गई। इन संस्थाओं के क्षेत्राधिकार को व शक्ति में वृद्धि करने के लिए इन्हें 29 विषय (कार्य) दिए गए हैं। इसके साथ ही पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो गया।
(3) प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था – इस अधिनियम के द्वारा तीनों प्रकार की पंचायती राज संस्थाओं में ग्राम स्तर पर वार्ड पंच या सरपंच, खण्ड स्तर पर पंचायत समिति सदस्य एवं जिला स्तर पर जिला परिषद के सदस्यों का जनता द्वारा सीधे निर्वाचन का प्रावधान किया गया है। इसके साथ-साथ प्रधान व जिला प्रमुख का चुनाव निर्वाचित सदस्यों में से किए जाने की व्यवस्था की गई है।
(4) ग्राम सभा को संवैधानिक दर्जा – ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतान्त्रिक संस्था के रूप में स्थानीय स्वशासन की एक इकाई के रूप में ग्राम सभा की संरचना की गई, जिसके लिए क्षेत्र के समस्त वयस्क मतदाताओं द्वारा मतदान किया जाता है। ग्राम सभा के अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का निर्धारण राज्य विधानमण्डलों द्वारा किया जाता है।
(5) पंचायतों का कार्यकाल – भारतीय संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार पंचायतों के तीनों स्तरों पर इनका कार्यकाल 5 वर्ष का निर्धारित किया गया है। इन पंचायतों का निर्वाचन 5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व ही कर लिया जाना चाहिए।
(6) सदस्यों की योग्यताएँ – प्रत्येक मतदाता यदि वह 21 वर्ष की आयु को पूर्ण कर चुका हो तो पंचायत के निर्वाचन में भाग ले सकता है। तथा इसके साथ ही वह अदालत द्वारा अपराधी घोषित न किया जा चुका हो, पागल न हो।
(7) आरक्षण की व्यवस्था- यह संविधान संशोधन अधिनियम सभी संस्थाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान करता है।
(8) करारोपण अधिकार – राज्यों के विधान मण्डलों द्वारा पंचायतों को कुछ विशेष प्रकार के करों को निर्धारण करने के अधिकार सौंपे गए है। विभिन्न प्रकार के कर व शुल्क निर्धारित करने व उनको वसूल करने के अधिकार राज्य सरकार द्वारा पंचायतों को प्रदान किया गया है।
(9) राज्य निर्वाचन आयोग का गठन– पंचायतों के निर्वाचन के लिए तैयारी करना, मतदाता सूचियाँ तैयार करना, चुनाव का आयोजन करना, निरीक्षण करना आदि राज्य निर्वाचन आयोग का कार्य हैं। इस आयोग की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी। राज्यपाल निर्वाचन आयोग के कार्यों के सम्पादन के लिए उसे कर्मचारी उपलब्ध कराएगा।
(10) राज्य वित्त आयोग का गठन- इस संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात वित्त आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है। यह आयोग राज्यपाल को इन संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा, आय के स्त्रोतों, धन के वितरण, राज्य सरकार द्वारा प्राप्त अनुदान कर व चुंगी आदि के बारे में अनुशंसा करता है।
(11) लेख परीक्षण- इस संविधान संशोधन अधिनियम में यह भी प्रावधन किया गया है कि राज्य सरकार इन संस्थाओं के लेखों का समय-समय पर परीक्षक एवं जांच हेतु नियमों का निर्माण कर सकती है।