तुलसीदास ने स्पष्ट कहा है कि ईश्वर-भक्ति रूपी मेघ या बादल ही पेट की आग को बुझा सकते हैं। तुलसी का यह काव्य-सत्य उस युग में भी था तो आज भी यह सत्य है। प्रभु की भक्ति करने से सत्कर्म की प्रवृत्ति बढ़ती है। प्रभु की प्रार्थना से पुरुषार्थ और कर्मनिष्ठा का समन्वय बढ़ता है। इससे वह व्यक्ति ईमानदारी से पेट की आग को शांत करने अर्थात् आर्थिक स्थिति सुधारने और आजीविका की समुचित व्यवस्था करने में लग जाता है। इस तरह कर्मनिष्ठ भक्ति से तुलसी का वह काव्य-सत्य वर्तमान का सत्य दिखाई देता है। कोरी अन्ध-आस्था एवं कर्महीनता से की गई भक्ति का दिखावा करने से व्यक्ति पेट की आग नहीं बुझा पाता है।