द्वितीय विश्व युद्ध के समय हिटलर जर्मनी का शासक था। उसकी नस्लवादी नीतियों के कारण यहूदियों पर अत्याचार होने लगे थे। उन्हें तरह-तरह के कष्ट, यातनाएँ सहनी पड़ती थीं। उसके साथ ढोर-डकारों जैसा अमानवीय व्यवहार किया जाता था। ऐन फ्रैंक का परिवार भी यहूदी था।
एक दिन ऐन की बड़ी बहिन मार्गोट को ए.एस.एस. से बुलावा आया था। उस समय मार्गोट सोलह वर्ष की नवयुवती थी। उसके बुलावा आने का आशय उत्पीड़न ही था। परिवार इस बुलावे को कैसे सहन कर सकता था। इस बुलावे से भयभीत होकर, फ्रैंक परिवार ने तत्काल गोपनीय स्थान पर जाने का निर्णय लिया ताकि वे अपने आपको सुरक्षित रख सकें और क्रूर शासक के द्वारा किए जा रहे अन्याय और अत्याचारों से बच सकें।