'डायरी के पन्ने' में ऐन फ्रैंक द्वारा 1942 से 1944 के समाज में नारी की अत्यन्त दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है और आकांक्षा व्यक्त की गई है कि औरतों को भी सैनिकों के समान सम्मानित दर्जा दिया जाना चाहिए। यह सत्य है कि आधुनिक युग में शिक्षित नारी ने अपने कार्यों से समाज की प्रगति के नये प्रतिमानों को सुशोभित किया है। आज इक्कीसवीं सदी में कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ अनेक सामाजिक अवरोधों को तोड़कर नारी ने सफलता का नया अध्याय न रचा हो। उसने अपनी शिक्षा के बल पर पुरुष वर्ग के समान उन्नति ही नहीं की बल्कि आज वह पुरुषों से कन्धों से कन्धा मिलाकर हर क्षेत्र में प्रगति कर आगे बढ़ रही है। इस आधार पर सहज कहा जा सकता है कि आज की नारी ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है।