1. जब कवि के मन में कोई कल्पना या भाव रूपी बीज जागा, तो उचित खाद-पानी अर्थात् अभिव्यक्ति का साथ पाकर उससे शब्द रूपी अंकुर फूटे, जो कि पल्लवित-विकसित भावों के पत्ते और पुष्प रूप में कविता रूपी पौधे . में बदल जाते हैं।
2. कविता या काव्य की अभिव्यक्ति तो हृदयगत भावों-विचारों की क्षण भर की प्रक्रिया में उत्पन्न होती है परन्तु उसकी फसल रूपी रसधारा अनन्त काल तक रहती है। कविता का बार-बार आस्वाद करने पर भी तथा पाठकों के द्वारा उसका रस लगातार लुटाते रहने पर भी वह कम नहीं होती है, उसका रस समाप्त नहीं होता है। इसी विशेषता से कविता सर्वकालिक होती है।