लेखक परिचय - स्वातन्त्र्योत्तर साहित्यकारों में अग्रणी स्थान रखने वाले धर्मवीर भारती का जन्म इलाहाबाद नगर में सन् 1926 ई. में हुआ। वहीं से उच्च शिक्षा प्राप्त कर ये स्वावलम्बी बने। 'अभ्युदय' और 'संगम' पत्रों का सम्पादन-सहयोग करने के बाद ये प्रयाग विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक बने। कुछ समय बाद विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़कर मुम्बई चले गये और वहाँ 'धर्मयुग' पत्रिका का सम्पादन करने लगे।
इन्हें 'दूसरा सप्तक' के कवियों में स्थान प्राप्त हुआ। इन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्ति स्वातन्त्र्य, मानवीय संकट तथा रोमानी चेतना को अभिव्यक्ति दी है। इनकी रचनाओं में सामाजिक चेतना के साथ संगीत की लय मिलती है। इस विशेषता से ये रोमानी गीतकार माने जाते हैं। इन्हें पद्मश्री, व्यास सम्मान एवं साहित्य-जगत् के कई अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुए।
भारतीजी का निधन सन् 1997 ई. में हुआ। - रचनाएँ-इन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, गीतिनाट्य और रिपोर्ताज आदि सभी में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - 'कनुप्रिया', 'सात गीत-वर्ष', 'ठंडा लोहा' काव्य-संग्रह; सूरज का सातवाँ घोड़ा', 'गुनाहों का देवता' उपन्यास; 'अंधा युग' गीतिनाट्य; 'मुर्दो का गाँव', 'चाँद और टूटे हुए लोग', 'बन्द गली का आखिरी मकान' कहानी-संग्रह; 'ठेले पर हिमालय', 'कहनी-अनकहनी', 'पश्यन्ती', 'मानव मूल्य और साहित्य' निबन्ध-संग्रह।
पाठ-सार - 'काले मेघा पानी दे' शीर्षक निबन्ध (संस्मरण) में लोक-जीवन में प्रचलित विश्वास और विज्ञान दोनों ही दृष्टियों का द्वन्द्व उपस्थित किया गया है। इन दोनों में कौन सार्थक और सत्य है, इसका निर्णय पाठकों पर छोड़ दिया गया है।