हिन्दी साहित्य में रेणु आंचलिक उपन्यासकार, कहानीकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना में हुआ था। इनका जीवन उतार-चढ़ावों एवं संघर्षों से भरा हुआ था। इनकी प्रमुख रचनाएँ 'मैला आँचल', 'परती-परिकथा', 'दीर्घतपा', 'जुलूस', 'कितने चौराहे' (उपन्यास); 'ठुमरी', 'अग्निखोर', 'रात्रि की. महक' (कहानी संग्रह); 'ऋण जल-धन जल', 'वनतुलसी की गंध' (संस्मरण); नेपाली क्रांतिकथा (रिपोर्ताज) आदि हैं। साहित्य के अलावा विभिन्न राजनैतिक एवं सामाजिक आन्दोलनों में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी की। 11 अप्रैल, 1977 को पटना में इनका निधन हुआ था।