स्टॉइकियोमीट्री दोष – इस प्रकार के बिन्दु दोष से ठोस की स्टॉइकियोमीट्री पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् यहाँ क्रिस्टल में धनायन एवं ऋणायन का अनुपात रासायनिक सूत्र के अनुरूप ही रहता है। यह ऐसी स्थिति में ही सम्भव है जब क्रिस्टल में धनायनों तथा ऋणायनों द्वारा अपने-अपने उचित बिन्दुओं से विचलन के फलस्वरूप छोड़ी गई रिक्तिओं की संख्या समान होती है। इससे स्टॉइकियोमीट्री अपरिवर्तित रहती है। ऐसे दोष उच्च ताप के कारण आयनों के तापीय कम्पनों (Thermal Vibrations) के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं। अतः इन्हें आंतर (Intrinsic) अथवा ऊष्मागतिकी दोष (Thermodynamic Defects) भी कहा जाता है।
ये निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) रिक्तिका दोष – जब किसी जालक में कुछ जालक स्थल रिक्त होते हैं तब क्रिस्टल में रिक्तिका दोष उत्पन्न होता है। इससे पदार्थ का घनत्व कम हो जाता है। यह दोष पदार्थ को गरम करने पर भी उत्पन्न होता है
(ii) अन्तराकाशी दोष – जब किसी क्रिस्टलीय संरचना में अवयवी कण (परमाणु अथवा अणु) अन्तरकाशी स्थल (Interstitial Spaces) पर पाये जाते हैं तो अन्तराकाशी दोष (Interstitial Defects) उत्पन्न होता है। इस दोष से पदार्थ का घनत्व बढ़ता है। यह दोष अन-आयनिक (non-ionic) ठोसों में पाया जाता है
(iii) फ्रेंकेल दोष – यह दोष आयनिक ठोसों द्वारा दर्शाया जाता है। जब लघुतर आयन (साधारणतः धनायन) अपने वास्तविक स्थान से विस्थापित हो जाता है और अन्तराकाशी स्थान में आ जाता है तो इसे फेंकेल दोष कहते हैं। इसे विस्थापन दोष (displacement defect) भी कहते हैं। इस दोष में घनत्व अपरिवर्तित रहता है। यह उन ठोसों द्वारा दिखाया जाता है जिनमें आयनों के आकार में अधिक अन्तर हो। वह जालक बिन्दु जहाँ से अवयवी कण विस्थापित होता है, रिक्त हो जाता है। इसे रिक्तिका या होल (hole) कहते हैं। चूंकि इस प्रकार के दोघ में क्रिस्टल में धनायनों और ऋणायनों की संख्या और आवेश बराबर होता है। अत: यह एक स्टॉइकियोमीट्री प्रकार का दोष है। उदाहरण-ZuS, AgCI, AgBr, Agl आदि। यह दोष Zn2+ और Ag+ आयन के लघु आकार के कारण होता है।
(iv) शॉकी दोष – यह दोष भी आधारभूत रूप से उन आयनिक ठोसों द्वारा दिखाया जाता है जिनकी उपसहसंयोजन संख्या (Co-ordination number) उच्च हो तथा धनायन एवं ऋणायन का। आकार लगभग समान (equal) हो। यह भी एक प्रकार का रिक्तिका दोष है। यहाँ विद्युत् उदासीनता बनाये रखने के लिए लुप्त होने वाले धनायनों और ऋणायनों की संख्या बराबर होती है। अत: यौगिक में छिद्र युग्म (Pair of holes) बन जाते हैं। इससे घनत्व में कमी आती है। यह दोष उन ठोसों द्वारा दिखाया जाता है जिनमें धनायन और ऋणायन के आकार लगभग समान होते हैं। उदाहरण-NaCl, KCI, CsCl, AgBr आदि ।आयनिक ठोसों में इस प्रकार के दोषों की संख्या काफी महत्वपूर्ण है।
उदाहरणार्थ – कमरे के ताप पर NaCl में लगभग 106 शॉटकी युगल या छिद्र युग्म प्रति सेमी3 होते हैं। एक सेमी. में लगभग 1022 आयन पाये जाते हैं। इस प्रकार प्रति 1016 आयनों में एक शॉट्की दोष उपस्थित होता है।
नोट – AgBr फ्रेंकेल एवं शॉकी दोनों प्रकार के दोषों को प्रदर्शित करता है।