(i) टिण्डल प्रभाव (Tyndall Effect) – इसका प्रेक्षण सर्वप्रथम फैराडे ने तथा इसका विस्तारपूर्वक अध्ययन टिण्डल ने किया था।
जब एक अंधेरे कमरे में रोशनदान से प्रकाश की किरणें आती हैं तो कमरे की हवा में उपस्थित धूल के कण जो प्रकाश के मार्ग में पड़ते हैं, चमकने लगते हैं। जब प्रकाश की किरण को शुद्ध जल या नमक के विलयन में प्रवाहित किया जाता है तो प्रकाश किरण का मार्ग अदृश्य रहता है। परन्तु यही प्रकाश कोलॉइडी विलयन पर केन्द्रित किया जाता है तो इनका मार्ग स्पष्ट दिखाई देता है। प्रकाश पुंज को कोलॉइडी विलयन में यदि विपरीत दिशा से देखा जाये तो यह चमक प्रदीप्ति शंकु (Bright Cone) के आकार में दिखाई देती है। इसे टिण्डल कोन (Tyndall Cone) कहते हैं।
कोलॉइडी विलयनों द्वारा प्रकाश का यह प्रकीर्णन टिण्डल प्रभाव (Tyndall Effect) कहलाता है।
(ii) ब्राउनी गति (Brownian Movement) – जब कोलॉइडी विलयन का निरीक्षण अति सूक्ष्मदर्शी से किया जाता है तो कोलॉइडी कण टेढ़े-मेढ़े (zip-zag) चलते हुए दिखाई देते हैं। ये कण हमेशा तीव्र गति से चलते रहते हैं। कोलॉइडी कणों का तीव्र गति से टेढ़े-मेढ़े चलना ब्राउनी गति (Brownian Movement) कहलाता है। चूंकि इस गति का निरीक्षण सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्राउन ने किया था इसलिए इसे ब्राउनी गति कहते हैं।