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कृ.१ इ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ८० से १०० शब्दों में लिखिए। (सिर्फ १) (8) १) 'मेरा भला करने वालों से बचाएँ' पाठ के आधार पर ग्राहकों की वर्तमान स्थिति का चित्रण कीजिए। २) 'कलम का सिपाही' पाठ के आधार पर ग्रामीण और शहरी जीवन की समस्याओं पर अपने विचार लिखिए।

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(1) लेखक ने इस पाठ के माध्यम से ग्राहकों की वर्तमान स्थिति का यथार्थ चित्रण करते हुए बताया है कि आज के इस युग में ग्राहक दुकानदारों दवारा आसानी से ठगे जा रहे हैं। दुकानदारों द्वारा चीजें सेल में लगाकर उन पर छूट देना या एक पर एक चीज मुफ्त देना एक फैशन बन गया है। ग्राहक भी एक के ऊपर एक चीज फ्री, सेल व छूट के लालच में आकर आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ खरीदने लगे हैं। आज हर तरह सेल का बोलबाला चल रहा है। खाने की चीजों से लेकर जरूरत के हर सामान पर भारी मात्रा में छूट देकर ग्राहकों को आकर्षित किया जा रहा है। चाहे घर हो, दफ्तर हो, पार्क हो या फिल्‍म थिएटर हो हर तरफ ऐसे लोग आ ही जाते हैं, जो मीठी-मीठी बातें बोलकर लोगों को उनका फायदा दिखाते हैं और इनाम पाने का लालच देकर अपना फायदा पूरा कर लेते हैं। कुछ ग्राहक दुकानदारों की इन तरकीबों को अच्छी तरह जानते हैं। वे उनसे बचने की पूरी कोशिश भी करते हैं, परंतु एक-न-एक दिन वे भला करने वाले इन लोगों की बातों में फँस ही जाते हैं और अपना नुकसान कर बैठते हैं। अत: इन भला करने वालों को पहचानना मुश्किल है।

(2) ग्रामीण जीवन : भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अधिकतम जनता आज भी गाँवों में निवास करती है और कृषि कार्य से जुड़ी है। किसानों की बड़ी दयनीय स्थिति है। वह सदैव कर्ज के बोझ से दबा रहता है। गांव में आज भी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी है। खेती के साधन हों या घर-गृहस्थी का सामान, गाँववासियों को शहरों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यहाँ विकास की गति अत्यंत मंद है। गांवों में आज भी शिक्षा का साम्राज्य है। अनेक गाँवों में स्कूल नहीं हैं, स्कूल है तो शिक्षक नहीं हैं। इसी प्रकार वहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं का भी अभाव है। या तो अस्पताल नहीं हैं, अस्पताल है तो डॉक्टर नहीं हैं। परिवहन के साधनों का नितांत अभाव है।

शहरी जीवन : पिछले कुछ दशकों से ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में रहने वाले लोग रोजगार की तलाश में बेतहाशा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। शहरों में आवास की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वहाँ दड़बेनुमा मकानों की भीड़ बढ़ती जाती है। जिधर दृष्टि जाती है, रंग-बदरंग, ऊल-जलूल बेतरतीब मकान-ही-मकान दिखाई पड़ते हैं। बिजली, पानी, सीवर, सड़क और परिवहन प्रणाली की कमी है। शहर कूड़े का ढेर बनते जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर वाहनों से होने वाला प्रदूषण, लगातार होने वाला शोर, भीड़, धुआँ असहज महसूस कराता है। देर रात तक ऑफिस, दुकानें खुली रहती हैं। बस, ट्रेन, टैक्सियाँ, स्कूटर्स सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। भीड़भाड़, ट्रैफिक जाम और अपराध नगरों में रोज की बात है।

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