मानव तथा पर्यावरण का आपस में गहरा तथा अटूट संबधं है। मानव ही पर्यावरण को स्वच्छ या प्रदूषित करता है तथा उसका प्रभाव मानव को ही उसी रूप में प्रभावित करता है। मानव समाज के लिए स्वच्छ तथा स्वथयवर्धक पर्यावरण अति आवश्यक है। परन्तु पर्यावरण को स्वच्छ व स्वास्थयवर्धक बनाना मनुष्यो पर ही निर्भर करता है। मानव की क्रियाओ का अनियोजित होना पर्यावरण को उतनी ही अधिक हानि पहुंचाता है। महाननगरो में ट्रको तथा बसों से निकलता काला धुआँ , नदियों में नालो का गन्दा पानी तथा सड़को पर बिखरा कूड़ा -कर्कट आदि महानगरों के पर्यावरण को दूषित करते है। ये सभी क्रिया -कलाप मिल -जल कर हमारे पर्यावरण के सभी घटको जैसे - जल , वायु तथा मृदा के साथ - साथ हमे जीवित रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। जनसंख्या में लगातार वृद्धि द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित करने में मानव की प्रमुख भूमिका है। जनसँख्या के बढ़ने से आवास वस्त्र तथा खाद्य - पदार्थो की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। इन अवश्क्ताओ को पूरा करने के लिए प्रकृतिक सम्पदाओं की हानि होती है जैसे जंगलो को अत्यधिक काटा जाना भूमिगत जल का अनियंत्रित करते है। जब प्राकृतिक साधन पर्यावरण को पुनः स्वछता प्रदान नहीं कर सकते तो प्रदूषण होता है। उद्योगिक दुर्घटनाओं तथा बिना नियोजित लगाय गए कारखानों आदि से भी पर्यावरण के प्रदूषण होता है। अत्यधिक रसयानो का उपयोग भी इसी का एक घटक है। प्राकृतिक संपदाओ का अतिशोषण भी पर्यावरण को बढ़ाव देता है। उद्योगिक क्रांति से वायु तथा जल प्रदूषण होता है। अम्लीय वर्षा अन्तः दहन इंजनों द्वारा प्रचलित वाहनों द्वारा अधिक मात्रा में सल्फर युक्त यौगिक को वायु में मुक्त करने का परिणाम, है। ऐरोसॉल के उपयोग से ओजोन सतह की हानि हो रही है। मानव के विभिन्न क्रिया -कलापो के परिणाम से उतपन अपशिष्ट पदार्थ पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे आगे है। ये अपशिष्ट पदार्थ अत्यंत घातक होते है तथा इनका प्रभाव दूर -दूर तक फैल जाते है। इनका निपटान आजकल विश्व की समस्या है। इनका पुनःचक्रण ही पर्यावण को दूषित होने से बचा सकता है। पर्यावरण को प्रदूषित करने की भूमिका मनुष्य की है , इसके साथ -साथ इस प्रदूषण पर्यावरण का शिकार भी प्रमुख रूप से मानव ही है।