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निम्नांकित पद्यांश से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दें :

"हुँकारों से महलों की नींद उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।"

(i) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस पाठ से उद्धृत हैं?

(ii) इन पंक्तियों के रचनाकार कौन हैं? 

(iii) इस पद्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखें।

1 Answer

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(i) जनतंत्र का जन्म। 

(ii) रामधारी सिंह दिनकर।

(iii) प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के 'जनतंत्र का जन्म' काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों से कवि का आशय है कि जनता की हुँकार से, जनता की ललकार से, राजमहलों की नींवें उखड़ जाती हैं। मूल भाव है कि जनता और जनतंत्र के आगे राजतंत्र का अब कोई मोल नहीं। जनता की साँसों के बल से राजमुकुट हवा में उड़ जाते हैं- गूढार्थ हुआ कि जनता ही राजा को मान्यता प्रदान करती है और वही राजा का बहिष्कार या समाप्त भी करती है। जन-पथ को कौन अबतक रोक सका है? समय में वह ताव या शक्ति कहाँ जो जनता की राह को रोक सके। महाकारवाँ के भय से समय भी दुबक जाता है। जनता जैसा चाहती है, समय भी वैसी ही करवट बदल लेता है, जनता के मनोनुकूल समय बन जाता है। यहाँ मूल भाव यह है कि किसी भी तंत्र की नियामक शक्ति जनता है। उसका महत्व सर्वोपरि है।

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