हमारा विद्यालय
प्रारंभ : विद्यालय को प्राचीन काल से ही मंदिर का स्थान दिया गया है। प्राचीन काल में बालक 6,8 अथवा 11 वर्ष की अवस्थाओं में में गुरुकुलों (विद्यालयों) में ले जाए जाते थे और गुरु के पास बैठकर ब्रह्मचारी के रूप में शिक्षा प्राप्त करते थे। गुरु उनके शारीरिक और बौद्धिक संस्कारों को पूर्ण करता हुआ, उन्हें सभी शास्त्रों एवं उपयोगी विद्याओं की शिक्षा देता तथा अंत में दीक्षा देकर उन्हें विवाह कर गृहस्थाश्रम के विविध कर्तव्यों का पालन करने के लिए वापस भेजता । वर्तमान के विद्यालय, प्राचीन काल के गुरुकुलों से बहुत अलग अवश्य हैं किन्तु आज भी विद्यालयों को मंदिरों का और अध्यापकों को भगवान् का दर्जा दिया जाता है। मेरा विद्यालय शहर की भीड़भाड़ से दूर एकांत स्थल पर है। प्राचीन काल से ही विद्यालयों के लिए ऐसे स्थान को उपयुक्त समझा जाता था, जहां पर किसी प्रकार का शोर न हो, क्योंकि पढ़ाई के लिए शांति की आवश्यकता होती है। मेरा विद्यालय बहुत बड़ी जगह में फैला हुआ है, इसके चारों ओर ऊंची-ऊँची दीवारें हैं। मेरे विद्यालय के पीछे की ओर एक बहुत बड़ा मैदान है, जिसमें हम सभी विद्यार्थी खेल-कूद का आनंद लेते हैं। यहीं पर हमारा प्रार्थना स्थल है, जहाँ पर हम सुबह प्रार्थना करते हैं और अपने दिन की शुरूआत करते हैं। विद्यालय के मैदान के चारों ओर बड़े-बड़े वृक्ष लगे हुए हैं और छोटी-छोटी घास लगी हुई है। विद्यालय परिसर में कई छोटी-छोटी वाटिकाएँ भी हैं, जिनमें रंग-बिरंगे फूल खिले होते हैं। इससे हमारे विद्यालय का वातावरण बहुत ही अच्छा रहता है और यह देखने में भी बहुत सुंदर लगता है।
शिक्षण व्यवस्था : अनुशासन किसी भी व्यक्ति की सफलता में अहम् भूमिका निभाता है। जब बच्चा छोटा होता है तो वह पहले परिवार से तथा बाद में विद्यालय में जाकर अनुशासन के महत्त्व को समझता है। अनुशासन की दृष्टि से हमारा विद्यालय बहुत कठोर है। विद्यालय में यदि कोई विद्यार्थी अनुशासन का उल्लंघन करता है तो उसे कड़ा दंड दिया जाता है। प्रतिदिन वर्दी, नाखून और दाँतों का निरीक्षण किया जाता है। प्रत्येक विद्यार्थी के घर पर उसके अनुशासन की मासिक रिर्पोट भेजी जाती है। हमारे विद्यालय में कुल 20 अध्यापक-अध्यापिकाएँ हैं, जो कि प्रत्येक कक्षा में अलग-अलग विषय पढ़ाते हैं। सभी अध्यापक-अध्यापिकाएँ अपने-अपने विषयों में विद्वान हैं, जिस कारण हमें हर विषय सरलता से समझ में आ जाता है।
पाठ्यक्रमेतर कार्य : हमारे विद्यालय में प्रत्येक सप्ताह योगा की कक्षा भी होती है जिसमें योगा करना सिखाया जाता है तथा योगा के महत्त्व को समझाया जाता है। हमें अपने स्वास्थ्य को कैसे अच्छा रखना है, यह भी बताया जाता है। योगा से हमारे तन-मन में चुस्ती और स्फूर्ति बनी रहती है, जिससे हमारा पढ़ाई में मन लगा रहता है। हमारे विद्यालय के प्रधानाध्यापक बहुत ही शांत और अच्छे व्यक्तित्व के व्यक्ति हैं। वह हमें हमेशा कुछ नया करने की सलाह देते हैं और रोज प्रार्थना में हमें एक शिक्षाप्रद कहानी सुनाकर हमें शिक्षा का महत्व बताते हैं। उन्होंने जब से विद्यालय का कार्यभार संभाला है, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और साथ ही विद्यालय की प्रतिष्ठा भी बढ़ गई है। हमारे विद्यालय में प्रत्येक सप्ताह कोई ना कोई प्रतियोगिता होती रहती हैं, जैसे-चित्र-कला, वाद-विवाद, कविताएँ आदि की प्रतियोगिताएँ होती रहती है। जिसमें सभी विद्यार्थी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। हमारे विद्यालय में कुछ बड़ी संस्थाओं द्वारा भी प्रतियोगिताएँ रखी जाती है, जिसमें विद्यार्थियों को इनाम के तौर पर कभी-कभी कुछ धन भी दिया जाता है।
हमारे विद्यालय का परिणाम हर वर्ष शत-प्रतिशत ही रहता है, जिसके कारण हमारा विद्यालय हमारे शहर का जाना-माना विद्यालय बन गया है। विद्यालय के परीक्षा परिणाम के शत-प्रतिशत रहने का कारण यहाँ के शिक्षकों का विद्वान और अच्छे व्यक्तित्व का होना भी है, जो विद्यार्थियों के सभी प्रश्नों को धैर्य के साथ सुनते हैं तथा उनका समाधान करते हैं। अध्यापकों के साथ-साथ बच्चों और उनके अभिभावकों की मेहनत के कारण भी विद्यालय का परीक्षा परिणाम हर वर्ष शत- प्रतिशत रहता है।
उपसंहार : किसी भी राष्ट्र की सर्वोत्तम निधि उस राष्ट्र के बच्चों को कहा जाता है। राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है कि बच्चों का सर्वांगीण विकास अच्छे से हो और बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालय एक उपयुक्त जगह है। जहाँ पर बच्चा पढ़-लिखकर सुसंस्कृत और सभ्य नागरिक बनता है और देश की प्रगति में अपना सहयोग देता है। विद्यालय और शिक्षा का एक व्यक्ति के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। अतः हम सभी को चाहिए कि हम प्रत्येक बच्चे को विद्यालय और शिक्षा के समीप लाएँ ताकि वह देश की प्रगति में अपना अथाह सहयोग प्रदान करें।