NCERT Solutions Class 10, Hindi, Sparsh, पाठ- 4, पर्वत प्रदेश में पावस
लेखक - सुमित्रानंदन पंत
प्रश्न अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -
1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर
पावस ऋतु में प्रकृति में बहुत-से मनोहारी परिवर्तन आते हैं।
जैसे-
- पर्वत, पहाड़, ताल, झरने आदि भी मनुष्यों की ही भाँति भावनाओं से ओत-प्रोत दिखाई देते हैं।
- पर्वत ताल के जल में अपना महाकार देखकर हैरान-से दिखाई देते हैं।
- पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से प्रतीत होते हैं।
- बादलों की ओट में छिपे पर्वत मानों पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों तथा तालाबों में से उठता हुआ कोहरा धुएँ। की भाँति प्रतीत होता है।
2. 'मेखलाकार' शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?
उत्तर
‘मेखलाकार’ शब्द का अर्थ है-मंडलाकार करधनी के आकार के समान। यह कटि भाग में पहनी जाती है। पर्वत भी मेखलाकार की तरह लग रहा था जैसे इसने पूरी पृथ्वी को अपने घेरे में ले लिया है। कवि ने इस शब्द का प्रयोग पर्वत की विशालता और फैलाव दिखाने के लिए किया है।
3. 'सहस्र दृग-सुमन' से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
उत्तर
'सहस्र दृग-सुमन' कवि का तात्पर्य पहाड़ों पर खिले हजारों फूलों से है। कवि को ये हजारों फूल पहाड़ों की आँखों के सामान लग रहे हैं इसीलिए कवि ने इस पद का प्रयोग किया है।
4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर
कवि ने तालाब की समानता दर्पण से की है क्योंकि तालाब भी दर्पण की तरह स्वच्छ और निर्मल प्रतिबिम्ब दिखा रहा है।
5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक चिंतित होकर ऐसे देख रहे थे जैसे वे उनकी उँचाईओं को छूना चाहते हों| वे अपनी मन की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हैं|
6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों धँस गए?
उत्तर
आसमान में अचानक बादलों के छाने से मूसलाधार वर्षा होने लगी। वर्षा की भयानकता और धुंध से शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में धँस गए प्रतीत होते हैं।
7. झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर
झरने पर्वतों की गाथा का गान कर रहे हैं। बहते हुए झरने की तुलना मोती की लड़ियों से की गयी है।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए -
1. है टूट पड़ा भू पर अंबर।
उत्तर
कवि ने इस पंक्ति में वर्षा ऋतू के मूसलाधार बारिश का वर्णन करते हुए कहा है कि बादलों से इतनी तेज वर्षा हुई कि ऐसा लगा जैसे आकाश धरती पर टूट पड़ा हो|
2. −यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
उत्तर
इन पंक्तियों में कवि ने वर्षा के देवता इंद्र बादल रूपी वाहन में घूम-घूम कर जादुई करतब दिखा रहे हैं यानी प्रकृति में पल-पल परिवर्तन ला रहे हैं|
3. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झांक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर
इन पंक्तियों का में कवि ने पर्वतों पर उगे हुए वृक्षों का वर्णन करते हुए कहा है कि वे एकटक, स्थिर चिंता में डूबे मन में उच्च आकांक्षाएँ लिए हुए शांत आकाश की ओर देख रहे हैं|
कविता का सौंदर्य
1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के कुशल चितेरे हैं। वे प्रकृति पर मानवीय क्रियाओं को आरोपित करने में सिद्धहस्त हैं। ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने प्रकृति, पहाड़, झरने, वहाँ उगे वृक्ष, शाल के पेड़-बादल आदि पर मानवीय क्रियाओं का आरोप किया है, इसलिए कविता में जगह-जगह मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। कविता में आए मानवीकरण अलंकार हैं-
- पर्वत द्वारा तालाब रूपी स्वच्छ दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर आत्ममुग्ध होना।
- पर्वत से गिरते झरनों द्वारा पर्वत का गुणगान किया जाना।
- पेड़ों द्वारा ध्यान लगाकर आकाश की ओर देखना।
- पहाड़ का अचानक उड़ जाना।
- आकाश का धरती पर टूट पड़ना।
कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार के प्रयोग से चार चाँद लगा दिया है।
2. आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है −
उत्तर
मेरी दृष्टि में कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति, काव्य की चित्रमयी भाषा और कविता की संगीतात्मकता तीनों पर ही निर्भर करता है। यद्यपि इनमें से किसी एक के कारण भी सौंदर्य वृद्धि होती है पर इन तीनों के मिले-जुले प्रभाव के कारण कविता का सौंदर्य और निखर आता है; जैसे-
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
- पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
- मद में नस-नस उत्तेजित कर
- गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
शब्दों की आवृत्ति से भावों की अभिव्यक्ति में गंभीरता और प्रभाविकता आ गई है।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर
- मेखलाकार पर्वत अपार
- अवलोक रहा है बार-बार
- है टूट पड़ा भू पर अंबर!
- फँस गए धरा में सभय ताल!
- झरते हैं झाग भरे निर्झर।
- हैं झाँक रहे नीरव नभ पर।
शब्दों की चित्रमयी भाषा से चाक्षुक बिंब या दृश्य बिंब साकार हो उठता है। इससे सारा दृश्य हमारी आँखों के सामन घूम जाता है।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
- अवलोक रहा है बार-बार
- नीचे जल में निज महाकार,
- मोती की लड़ियों-से सुंदर
- झरते हैं झाग भरे निर्झर!
- रव-शेष रह गए हैं निर्झर !
- है टूट पड़ा भू पर अंबर !
कविता में तुकांतयुक्त पदावली और संगीतात्मकता होने से गेयता का गुण आ जाता है।
3. कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। कविता में इन स्थलों पर चित्रात्मक शैली की छटा बिखरी हुई है-
1. मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण फैला है विशाल!
2. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
योग्यता विस्तार
1. इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर
वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन-वर्षा को जीवनदायिनी ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु का इंतज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से किया जाता है। वर्षा आते ही प्रकृति और जीव-जंतुओं को नवजीवन के साथ हर्षोल्लास भी स्वतः ही मिल जाता है। इस ऋतु में हम अपने आसपास अनेक प्राकृतिक परिवर्तन देखते हैं; जैसे-
- ग्रीष्म ऋतु में तवे सी जलने वाली धरती शीतल हो जाती है।
- धरती पर सूखती दूब और मुरझाए से पेड़-पौधे हरे हो जाते हैं।
- पेड़-पौधे नहाए-धोए तरोताज़ा-सा प्रतीत होते हैं।
- प्रकृति हरी-भरी हो जाती हैं तथा फ़सलें लहलहा उठती हैं।
- दादुर, मोर, पपीहा तथा अन्य जीव-जंतु अपना उल्लास प्रकट कर प्रकृति को मुखरित बना देते हैं।
- मनुष्य तथा बच्चों के कंठ स्वतः फूट पड़ते हैं जिससे प्राकृतिक चहल-पहल एवं सजीवता बढ़ती है।
- आसमान में बादल छाने, सूरज की तपन कम होने तथा ठंडी हवाएँ चलने से वातावरण सुहावना बन जाता है।
- नालियाँ, नाले, खेत, तालाब आदि जल से पूरित हो जाते हैं।
- अधिक वर्षा से कुछ स्थानों पर बाढ़-सी स्थिति बन जाती है।
- रातें काली और डरावनी हो जाती हैं।