जायसी - जायसी का पूरा नाम मलिक मुहम्मद जायसी था। इनका जन्म अनुमान 1492 के आस-पास माना जाता है। ये उत्तर प्रदेश के जायस नामक कस्बे के में ही शीलता के कारण इनका चेहरा विकृत हो गया । बायीं आँख जाती रही जनश्रुति है कि एक बार ये शेरशाह के दरबार में गए थे शेरशाह इनकी भद्दी सूरत देखकर हँस पड़े। इन्होंने तुरत पूछा- 'मोहि हँसेसि कि कोहर हिं ? अर्थात् आप मुझको देखकर हँसते हैं या कुम्भकार (परमात्मा) पर जिसने मुझे बनाया । शेरशाह लज्जित हो गया। उसने क्षमा मांगी और जायसी का बड़ा आदर किया ।
वस्तुतः जायसी का बहिरंग जितना कुरूप था, अंतरंग उतना ही सुन्दर एवं कोमल था। ये पहुँचे हुए फकीर थे और कवि भी । उनका नाम प्रेममार्गी कवियों में अग्रगण्य है 'पद्मावत' नामक प्रेम गाथा-काव्य की रचना कर ख्याति प्राप्त की। इनकी कृतियों में अखरावट, आखिरी कलाम, चित्ररेखा, कहरनामा, मसला आदि हैं ।
मलिक मुहम्मद जायसी 'प्रेम की पीर' के कवि हैं। मार्मिक अंतर्यथा से घिरा हुआ यह प्रेम अत्यन्त व्यापक गूढ आशयों वाला और महिमामय है। यह प्रेम अनुभूतिमय, रासायनिक एवं इस अन्यान्न आतिकारी है कि यह विभिन्न पात्रों को अमिट चरित्रों के रूप में निखारते हुए उन्हें एक दिशा देकर परिणतियों तक पहुँचा देता है। 'पद्मावत' के आख्यान में सजीव कहानी का मर्मस्पशों वेदनामय रस है और चरित्रों, उनके सुलगते-दहकते मनोभावों के दुर्निवार प्रभाव हैं पाठकों-श्रोताओं जो को अपने लपेटे में ले लेते हैं। जायसी की इस प्रेम कहानी में प्राणों का प्राणों से, हृदय का हृदय से, मर्म का मर्म से और जीवन विवेक का जीवन विवेक से ऐसा मानवीय मेल है जो उनके काव्थ को बहुत ऊँचा उठा देता है और उसमें व्यापकता और गहराई एक साथ ला देता है । जायसी की मृत्यु अनुमानतः 1548 ई. में हुई ।