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NCERT Solutions Class 8, Hindi, Bharat ki Khoj भारत की खोज

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NCERT Solutions Class 8, Hindi, Bharat ki Khoj भारत की खोज

1. 'आखिर यह भारत है क्या? अतीत में यह किस विशेषता का प्रतिनिधित्व करता था? उसने अपनी प्राचीन शक्ति को कैसे खो दिया? क्या उसने इस शक्ति को पूरी तरह खो दिया है? विशाल जनसंख्या का बसेरा होने के अलावा क्या आज उसके पास ऐसा कुछ बचा है जिसे जानदार कहा जा सके ?'

ये प्रश्न अध्याय दो के शुरुआती हिस्से से लिए गए हैं। अब तक आप पूरी पुस्तक पढ़ चुके होंगे। आपके विचार से इन प्रश्नों के क्या उत्तर हो सकते हैं? जो कुछ आपने पढ़ा है उसके आधार पर और अपने अनुभवों के आधार पर बताइए।

उत्तर

भारत एक विशाल जनसंख्या वाला प्राचीनतम देश है।

भारत का अतीत: भारत एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसने विभिन्न युगों में विशेषता दिखाई है। इसका अतीत बौद्ध, जैन, गुप्त, मौर्य, मुघल, ब्रिटिश और स्वतंत्रता संघर्षों से भरपूर है।

प्राचीन शक्ति का अपनाना: भारतीय सभ्यता ने अपनी प्राचीन शक्ति को विभिन्न कारणों से खो दिया, जैसे विदेशी आक्रमण, आंतरिक संकट, और सामाजिक परिवर्तन।

शक्ति का पूरी तरह खोना: नहीं, भारतीय समाज ने अपनी शक्ति को पूरी तरह नहीं खो दिया है। वह आज भी वैज्ञानिक, दार्शनिक, और व्यापारिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

विशाल जनसंख्या के अलावा: भारत के पास विभिन्न धरोहर, विज्ञान, और तकनीकी उन्नति, सांस्कृतिक धरोहर, और विशिष्ट विचारशीलता है। इसके साथ ही, भारत आधुनिक विश्व में भी एक महत्वपूर्ण गहराई और प्रभाव रखता है।

2. आपके अनुसार भारत यूरोप की तुलना में तकनीकी विकास की दौड़ में क्यों पिछड़ गया था?

उत्तर

इसका मुख्य कारण संकुचित मानसिकता का होना है। इन रूढ़ियों ने भारत की गतिशीलता पर दुष्प्रभाव डाला है। यद्यपि पुराने भारत पर नज़र डालें तो भारत में मानसिकता, सजगता और तकनीकी कौशल का अतुल भंडार था। यहाँ लोगों में रंचनात्मक प्रवृत्ति विद्यमान थी। लोगों ने प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को खोजने का प्रयास किया था जिसके उदाहरण हमारे इतिहास में भरे पड़े हैं परन्तु इन सबको भूलकर हमने अनुसरण प्रवृति अपना ली। इसका दुष्प्रभाव ही था कि हमने अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति को खो दिया। जहाँ हमने ब्रह्मांड के रहस्य खोजे थे वहीं हम व्यर्थ के आडम्बरों में भ्रमित होकर अपने ज्ञान को धूमिल कर चुके थे। जहाँ राजाओं ने साहसिक कार्यों की लालसा और छलकती हुई जिंदगी के लिए सुदूर देशों तक भारतीय संस्कृति का प्रसार किया था वही हमारी संकीर्ण मानसिकता ने उस प्रसार पर रोक लगा दी थी (कहा जाता था कि महासागरों की यात्रा करने पर नर्क की प्राप्ति होती है)। इन सब संकुचित विचार धाराओं ने भारत के विकास पथ को रोक दिया। भारत में व्याप्त निरक्षरता व समाज में बढ़ते जाति-पाति ने भारत की गतिशीलता को छिन्न-भिन्न कर दिया। हमारी सोच के दायरों को अब धीरे-धीरे जैसे जंग लगने लगा था। हमारी वैज्ञानिक चेतना इन आडम्बरों, रूढ़ियों व संकीर्ण मानसिकता के नीचे दब कर रह गई। इसके विपरीत यूरोप भारत से जो कभी पिछड़ा हुआ था, अपनी वैज्ञानिक चेतना तथा बुलंद जीवन शक्ति और विकसित मानसिकता के कारण तकनीकी विकास में भारत से आगे निकल गया।

3. नेहरू जी ने कहा कि-‘मेरे खयाल से, हम सब के मन में अपनी मातृभूमि की अलग-अलग तसवीरें हैं और कोई दो आदमी बिलकुल एक जैसा नहीं सोच सकते।” अब आप बताइए कि-

(क) आपके मन में अपनी मातृभूमि की कैसी तसवीर है?

उत्तर

मातृभूमि से तात्पर्य जहाँ एक ओर इसका भौगोलिक स्वरूप आता है वहीं दूसरी ओर इसका सामाजिक रूप भी होता है। मेरी दृष्टि से मेरी मातृभूमि सबसे अलग और सबसे गौरवशाली है। अलग से तात्पर्य 'मेरा' है। जब हम इसकी भौगोलिक स्थिति को देखें तो ये जहाँ उत्तर में पर्वत राज हिमालय को लेकर खड़ी है तो दूसरी ओर दक्षिण में अथाह समुद्र के रूप में है, पश्चिम में रेगिस्तान के रूप में विराजमान है तो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और ऋतु परिवर्तन। ये सब इसके ही रूप हैं, जो हर जगह रमणीय और रोमांचकारी है। परन्तु सिर्फ़ भौगलिक स्वरूप से ही तो मेरी मातृभूमि की छवि पूर्ण नहीं होती क्योंकि ये सिर्फ़ इसलिए 'मेरे' या 'हम सब' के मन में मातृभूमि का दर्ज़ा लिया हुए नहीं है अपितु मेरी मातृभूमि ने अनेकों सभ्यताओं और संस्कृतियों को जन्म दिया। इसी मातृभूमि ने जहाँ राजा राम और श्री कृष्ण रूप में महापुरुषों को जन्म दिया है तो ये उन महापुरूषों की भी जननी रही है जिन्होंने भारत का नाम इतिहास में अमिट अक्षरों में लिख दिया है। इसने एक संस्कृति का पोषण नहीं किया अपितु अनेकों संस्कृतियों को अपनी मातृत्व की छाया में पाल-पोस कर महान संस्कृतिय के रूप में उभारा है। इसने जहाँ गुलामी को सहा, तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इन सभी कारणों ने इसे मातृभूमि का गौरव दिया है। मेरी मातृभूमि एक गौरवशाली मातृभूमि है।

(ख) अपने साथियों से चर्चा करके पता करो कि उनकी मातृभूमि की तसवीर कैसी है और आपकी और उनकी तसवीर (मातृभूमि की छवि) में क्या समानताएँ और भिन्नताएँ हैं?

उत्तर

हमारे साथियों के मन में अपने देश के प्रति अटूट लगाव है। वे अपने देश की संप्रभुता, रक्षा के लिए सदैव बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं। कुछ मित्र ऐसे भी हैं जो संशय में रहते हैं क्योंकि उनमें पश्चिमी सभ्यता का रंग चढ़ा हुआ है। वे विदेशों में जाकर बसना चाहते हैं। उन्हें पश्चिमी रहन-सहन और तौर तरीके पसंद हैं।

4. जवाहरलाल नेहरू ने कहा, "यह बात दिलचस्प है कि भारत अपनी कहानी की इस भोर-बेला में ही हमें एक नन्हें बच्चे की तरह नहीं, बल्कि अनेक रूपों में विकसित सयाने रूप में दिखाई पड़ता है।" उन्होंने भारत के विषय में ऐसा क्यों और किस संदर्भ में कहा है?

उत्तर

नेहरू जी ने सिंधु घाटी सभ्यता का वर्णन करते हुए भारत के विषय में ऐसा इसलिए कहा क्योंकि भारत की सभ्यता व संस्कृति विश्वविख्यात, प्राचीनतम सभ्यता है। यह संसार में अन्य देशों को मार्गदर्शन करते हुए आ रहा है। प्राचीन काल से यह शिक्षा का केंद्र रहा है। भारत सदियों से गणित, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, औषधि विज्ञान, मूर्तिकला तथा अनेक शिल्पकलाओं में विकसित देश रहा है।

5. सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के बारे में अनेक विद्वानों के कई मत हैं। आपके अनुसार इस सभ्यता का अंत कैसे हुआ होगा, तर्क सहित लिखिए।

उत्तर

सिंधु घाटी सभ्यता के अंत के विषय में विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत रहे हैं-

(i) कुछ विद्वान मानते हैं कि अकस्मात किसी दुर्घटना के कारण इस सभ्यता का अंत हो गया, पर इसका प्रमाण किसी के पास नहीं है।

(ii) कुछ मत के अनुसार, सिंधु सभ्यता सिंधु नदी के किनारे बसी थी। यह नदी भंयकर बाढ़ों के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं बाढ़ों के कारण इस घाटी का अंत हो गया होगा।

(iii) कुछ मत के अनुसार तो मौसम परिवर्तन से ज़मीन सूख गई हो और उपजाऊ भूमि रेगिस्तान में बदल गई हो। इस मत के तो कुछ सबूत भी मिलते हैं। जैसे- खुदाई के दौरान मोहनजोदड़ो सभ्यता के खंडहर बालू की सतह के नीचे मिले हैं। विद्वानों के अनुसार बालू के कारण ज़मीन की सतह ऊँची उठती गई और नगरवासियों को मजबूर होकर पुरानी नींवों पर ऊँचाई पर मकान बनाने पड़े।

मेरे अनुसार बदलते मौसम के कारण उपजाऊ भूमि का रेगिस्तान में बदल जाना इस सभ्यता के अंत की शुरूआत रहा होगा क्योंकि एक सभ्यता एक ही स्थान पर इतने लंबे समय तक प्रगति की ओर अग्रसर होती रही हो, वो यूंही तो नहीं उजड़ सकती। यदि कोई बड़ी दुर्घटना घटी होती तो प्रमाण हमें अवश्य मिलते। दूसरा नदी में बाढ़ के कारण तो ये भी थोड़ा भ्रम सा उत्पन्न करता है परन्तु यदि यह सत्य है तो इसका कोई कारण नहीं दिखता आज भी भारत के कई हिस्सों में बाढ़ आती है और हर दूसरे वर्ष आती है। इससे बर्बादी अवश्य होती है पर एक सभ्यता का नाश हो जाए इस मत का समर्थन करने का मन नहीं करता। इसलिए विद्वानों द्वारा तीसरे मत से ही सहमति लगती है कि इस सभ्यता का अंत मौसम के परिवर्तन के कारण रहा होगा क्योंकि मौसम ने उनकी कृषि सम्बन्धी व भरण-पोषण सम्बन्धी समस्याओं को उत्पन्न कर वहाँ की भूमि को रेगिस्तान में तबदील कर उस सभ्यता को दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया।

6. उपनिषदों में बार-बार कहा गया है कि "शरीर स्वस्थ हो, मन स्वच्छ हो और तन-मन दोनों अनुशासन में रहें।" आप अपने दैनिक क्रिया-कलापों में इसे कितना लागू कर पाते हैं? लिखिए।

उत्तर

इसका तात्पर्य यह है कि यदि मन स्वच्छ हो और तन स्वच्छ हो तो मनुष्य प्रगतिपथ पर स्वयं को अग्रसर कर सकता है। इसके लिए उसे तन और मन की स्वच्छता के साथ-साथ उनको अनुशासन में रखना आवश्यक होता है और ये हम तभी कर सकते हैं जब अपने मन को स्वच्छ बनाने के लिए उच्च विचारों का मनन करें, चिंताओं और परेशानियों को ज़्यादा अहमियत ना देकर अपने को प्रसन्नचित रखें। शरीर को (तन) स्वच्छ रखने के लिए प्रात: काल उठकर नित्य व्यायाम करें, लंबी सैर पर जाएँ और ये सब बड़े अनुशासन पूर्वक करें। यदि हम दैनिक दिनचर्या में इस प्रणाली को क्रियान्वित करते हैं तो हम एक उच्च व आदर्श जीवन को पा सकते हैं। एक स्वस्थ मन स्वस्थ विचारों को जन्म देता है जो हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव डालते हैं हमारी सोच को सकारात्मक दिशा देते हैं और जीवन की धारा ही बदल देते हैं। स्वस्थ शरीर (तन) उस सकारात्मक दिशा के साथ तालमेल बिठाता है और हम निरोग जीवन व्यतीत करते हैं। आज के समय में मनुष्य के पास जिसकी कमी है वह है समय, इस समय के अभाव ने उसकी दिनचर्या को मशीनी-मानव की तरह बना दिया है। यहाँ कार्य ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया। उसके पास स्वयं के लिए समय नहीं है इसलिए हम अपने मन व तन की स्वच्छता से अनभिज्ञ हैं और इसी कारणवश अनेकों मानसिक व शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त हैं। हमें चाहिए कि हम अनुशासन को अपने जीवन में स्थान दें प्रात: काल उठें, व्यायाम करें, सैर पर जाएँ। उच्च विचारों का मनन करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें तो हम स्वयं विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं।

7. नेहरू जी ने कहा कि "इतिहास की उपेक्षा के परिणाम अच्छे नहीं हुए।" आपके अनुसार इतिहास लेखन में क्या-क्या शामिल किया जाना चाहिए है? एक सूची बनाइए और उस पर कक्षा में अपने साथियों और अध्यापकों से चर्चा कीजिए।

उत्तर

इतिहास अतीत का वह आइना होता है, जिसके माध्यम से हम अच्छे-बुरे का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इसके माध्यम से हम वर्तमान और भविष्य को सुधारते हैं। इसके साथ ही ऐतिहासिक भविष्य को सँवार पाते हैं। हमारे विचार से इतिहास लेखन में प्रमुख घटनाओं को, प्रमुख व्यक्तियों को, जो समय को प्रभावित करते हैं, प्रमुख तिथियों को, शिलालेखों, खंडर के अवशेष, तत्कालीन, साहित्य एवं विदेशी यात्रियों के यात्रा-विवरण, उस काल के सिक्के को शामिल किया जाना चाहिए।

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8. "हमें आरंभ में ही एक ऐसी सभ्यता और संस्कृति की शुरुआत दिखाई पड़ती है जो तमाम परिवर्तनों के बावजूद आज भी बनी हुई है।" आज की भारतीय संस्कृति की ऐसी कौन-कौन सी बातें/चीजें हैं जो हजारों साल पहले से चली आ रही हैं? आपस में चर्चा करके पता लगाइए।

उत्तर

भारतीय संस्कृति, ये स्वयं में अद्भूत गुणों को समेटे हुए है। भारतीय संस्कृति का स्थायी रूप से टिके रहने का कारण इसका ठेठ भारतीयपन है और यही आधुनिक सभ्यता का आधार है। इसी कारण ये संस्कृति पाँच-छ: हज़ार वर्ष या उससे भी अधिक समय तक निंरतर बनी रही है वह भी बराबर परिवर्तनशील और विकासमान रहकर। उस समय के देशों से जैसे- फ़ारस, मिस्र, ग्रीस, चीन, अरब, मध्य एशिया और भूमध्य सागर के लोगों से उसका बराबर संपर्क रहा इन्होंने भारत को प्रभावित किया और स्वयं भी इससे प्रभावित हुए। परन्तु इसका सांस्कृतिक आधार इतना मजबूत था कि कितनी ही अन्य सभ्यता व संस्कृति आई, इसने उन्हें भी अपने में आत्मसात कर लिया। इसके इसी लचीलेपन ने इसे हज़ारों सालों तक बनाए रखा। अन्य संस्कृतियाँ व सभ्यताएँ वक्त के थपेड़ों के साथ जैसे उत्पन्न हुई थी उसी तरह पतन के गर्त में समा गई परन्तु भारतीय सभ्यता जस के तस बनी हुई है। भारतीय संस्कृति में कई ऐसी बातें हैं जो उसी तरह बनी हुई है जैसे प्राचीन कालीन युग से आधुनिक युग तक। जैसे- गंगा के तटों पर पीढ़ी दर पीढ़ी स्नान के लिए लोग खीचें चले आ रहे हैं। भारतीय संस्कृति में टकराहट को कभी जगह नहीं मिली इसके स्थान पर इसने हमेशा समन्वय व प्रेम को अधिक स्थान दिया है इसी कारण ये आज भी विद्यमान है। समय के अनुसार इसकी परिवर्तन शीलता ने भी इसको बनाए रखने में विशेष सहयोग दिया है। इसके यही गुण हैं जिसने इसे आज भी स्थापित रखा है।

9. आपने पिछले साल (सातवीं कक्षा में) बाल महाभारत कथा पढ़ी। भारत की खोज में भी महाभारत के सार को सूत्रबद्ध करने का प्रयास किया गया है-"दूसरों के साथ ऐसा आचरण नहीं करो जो तुम्हें खुद अपने लिए स्वीकार्य न हो।" आप अपने साथियों से कैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं और स्वयं उनके प्रति कैसा व्यवहार करते हैं? चर्चा कीजिए।

उत्तर

मैं अपने साथियों से उम्मीद करता हूँ कि वे मित्रवत व्यवहार करें, आपस में सुख-दुख में साथ खड़े हों। किसी संकट या मुसीबत के समय वह साथ खुलकर खड़े हों। आपस में प्रेम और मित्रता तथा सद्भाव रखें। वह स्वार्थी और अवसरवादी न हो। मैं भी अपने साथियों के साथ अच्छा व्यवहार करता हूँ। हम भी उनसे अच्छे व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं।

10. प्राचीन काल से लेकर आज तक राजा या सरकार द्वारा जमीन और उत्पादन पर 'कर' (tax) लगाया जाता रहा है। आजकल हम किन-किन वस्तुओं और सेवाओं पर कर देते हैं, सूची बनाइए।

उत्तर

  • आजकल हम निम्नलिखित वस्तुओं और सेवाओं पर कर देते हैं -
  • संपत्ति पर कर (संपत्तिकर)
  • आयकर (आय पर देने वाला कर)
  • खाद्य पदार्थों व वस्त्रों पर कर
  • होटलों व रेस्टोरेन्ट पर खानें पर कर
  • हवाई यात्रा पर कर
  • टी.वी, फ्रिज़, स्वर्ण आभूषणों की खरीद पर कर
  • सर्विस टैक्स (अर्थात् किसी काम को करने व करवाने पर कर)
  • व्यापार कर
  • मनोरंजन कर

11. (क) प्राचीन समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रभाव के दो उदाहरण बताइए।

उत्तर

प्राचीन समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के कई प्रभाव पड़े। भारत में आने वाले विदेशी यात्री भारत की संस्कृति की विशेषताओं को अपने साथ ले गए उनमें मुख्य हैं- भारतीय खानपान की चीज़ें, भारतीय कपड़ों का विदेशों में प्रचलन आदि।

(ख) वर्तमान समय में विदेशों में भारतीय संस्कृति के कौन-कौन से प्रभाव देखे जा सकते हैं? अपने साथियों के साथ मिलकर एक सूची बनाइए। (संकेत खान-पान, पहनावा, फिल्में, हिंदी, कंप्यूटर, टेलीमार्केटिंग आदि।)

उत्तर

वर्तमान समय में भी विदेशों में भारतीय संस्कृति के कई प्रभाव देखे जा सकते हैं, जैसे -

  • विभिन्न पकवान तथा खानपान की चीज़ें
  • भारत में पहने जाने वाले कपड़ों की माँग
  • भारतीय भाषा हिंदी तथा अन्य भाषाओं का प्रभाव
  • कंप्यूटर के क्षेत्र में विदेशी बाज़ार पर प्रभाव डाला है
  • अन्य पहलू जैसे- धर्म, दर्शन, नीति-शिक्षा आदि का भी महत्वपूर्ण स्थान है

12. पृष्ठ संख्या 34 पर कहा गया है कि जातकों में सौदागरों की समुद्री यात्राओं/ यातायात के हवाले भरे हुए हैं। विश्व/भारत के मानचित्र में उन स्थानों/ रास्तों को खोजिए जिनकी चर्चा इस पृष्ठ पर की गई है।

उत्तर

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13. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में अनेक विषयों की चर्चा है, जैसे, "व्यापार और वाणिज्य, कानून और न्यायालय, नगर-व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह और तलाक, स्त्रियों के अधिकार, कर और लगान, कृषि, खानों और कारखानों को चलाना, दस्तकारी, मंडियाँ, बागवानी, उद्योग-धंधे, सिंचाई और जलमार्ग, जहाज़ और जहाजरानी, निगमें, जन-गणना, मत्स्य उद्योग, कसाई खाने, पासपोर्ट और जेल-सब शामिल हैं। इसमें विधवा विवाह को मान्यता दी गई है और विशेष परिस्थितियों में तलाक को भी।" वर्तमान में इन विषयों की क्या स्थिति है? अपनी पसंद के किन्हीं दो-तीन विषयों पर लिखिए।

उत्तर

विवाह और तलाक

विवाह एक ऐसे रिस्ते का नाम है जिसमें दो परिवारों व दो व्यक्तियों का जीवन आपस में जुड़ता है। विवाह के द्वारा दो व्यक्ति अपनी युवावस्था की अल्हड़ता को छोड़कर दांपत्य जीवन में प्रवेश करते हैं और नई ज़िम्मेदारियों को उठाते हैं। विवाह में जहाँ दो व्यक्तियों के जीवन की डोर आपस में जुड़ जाती है उसी तरह दोनों परिवारों का समन्वय उनको नए रिश्तों में भी बाँधता है जिससे उनके कर्त्तव्य और ज़िम्मेदारियाँ दुगुनी हो जाती हैं। विवाह के पश्चात् एक लड़की एक नए घर में प्रवेश करती है, नए परिवेश में स्वयं को ढ़ालती है व उस परिवार के सदस्यों से नए सम्बन्ध स्थापित करती है। यह सब विवाह में संभव है। इसी तरह से एक लड़के को भी दूसरे परिवार के लिए नए सिरे से शुरूआत करनी होती है। पहले, विवाह में औरतों पर बहुत ज़िम्मेदारियों का दबाव बना रहता था क्योंकि ज़्यादातर औरतें अशिक्षित थीं इसलिए वह घर को संभालती थीं। उनके लिए उनका परिवार, उनके बच्चे, उनका भविष्य ही उनका लक्ष्य तथा उद्देश्य हुआ करता था। वह अपना सारा जीवन इसी में समर्पित कर देती थी क्योंकि भारतीय समाज पुरूष प्रधान समाज रहा है। उसकी स्थिति इसकी उलटी थी बाहर जाकर नौकरी करना व हर महीने अपनी आय से घर का खर्चा चलाना उनका कर्त्तव्य बस यहीं तक निहित था। परन्तु समय के साथ औरतों की स्थिति में भी बदलाव आने लगा। जहाँ घर-परिवार को अपना सर्वस्व सौंपकर वह इसमें आलौकिक सुख मानती थी। अब शिक्षित होने के कारण उनके उद्देश्य व सुखों में अंतर आना आरंभ हो गया। अब वो पुरूषों के बराबर चलकर उनकी ज़िम्मेदारियों में बराबर का साथ देने लगी इस कारण उनका उद्देश्य उनका करियर हो गया। अब उनके लिए अपनी माताओं की तरह घर-परिवार महत्वपूर्ण नहीं रहा। वह स्वयं के लिए एक नई मंज़िल चुन चुकी थीं इसी कारण समाज में तलाक की प्रवृति आरंभ होने लगी। जहाँ वह पहले पुरूष द्वारा की गई अवहेलना व प्रताड़ना को चुपचाप सहन कर जाती थीं, अब बुलंद आवाज़ में उसका विरोध करने लगी। समय की व्यस्तता ने भी घर पर समय ना देने के कारण समाज में तलाक की प्रवृति पर ज़ोर दिया है। व्यस्तता के कारण आपसी रिश्तों में खटास घुलने लगी है और शिकायतों के दौर बढ़ने लगे। पहले के दौर में तलाक बहुत ही बुरा माना जाता था और मुश्किल से ही लोग इसके लिए तैयार होते थे। परन्तु आज के प्रगतिशील समय में यह आम बात होती जा रही है। पहले तलाक लेने से पहले दस बार सोचा जाता था परन्तु आज छोटी-छोटी बातों में तलाक के लिए तैयार हो जाना विवाह जैसे रिस्ते के लिए बुरा दौर है। समाज में बढ़ती इस कुरीति ने विवाह के प्रति लोगों में भय उत्पन्न कर दिया है। हमें चाहिए कि हम सजग रहकर समान रूप से अपने रिश्तों का निर्वाह करें व तलाक जैसी कुरीति को समाज की जड़ से उखाड़ फेंके। तभी एक उज्जवल भविष्य और सभ्य समाज की ओर बढ़ा जा सकता है।

विधवा विवाह

प्राचीन काल से हमारे समाज में विधवा विवाह को उचित नहीं माना गया है। उस समय के अनुसार एक स्त्री के पति की मृत्यु हो जाने के पश्चात् सादा जीवन व्यतीत करना, उस स्त्री के लिए सही माना जाता था। उसके पति की मृत्यु के पश्यात् या तो उसे सती होना पड़ता था या फिर उसे समाज का परित्याग करना पड़ता था। उनको हरिद्वार या वाराणसी आश्रमों में साध्वी का जीवन व्यतीत करने के लिए छोड़ दिया जाता था। उनको कैसा जीवन जीना चाहिए इसके लिए नियमों की पूरी सूची उन्हें थमा दी जाती थी। उस समय के समाज में विधवाएँ अधिक संख्याओं में होती थीं। इसका मुख्य कारण था- बालावस्था में उनका विवाह जिसके कारण अकस्मात् दुर्घटना या बीमारी से उनके पति की मृत्यु उन्हें बचपन में ही विधवा बना देती थी। बालपन से ही विधवा जीवन जीने के लिए उन्हें झोंक दिया जाता था। समाज में उनकी स्थिति दयनीय बनी हुई थी। उनके उत्थान के लिए कई महापुरूषों ने आगे बढ़कर कार्य किए हैं। यहाँ तक चाणक्य द्वारा रचित "चाणक्य शास्त्र" में भी विधवा विवाह की बात कही गई है। परन्तु राजाराम मोहन राय ने विधवा विवाह के विरुद्ध महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सती प्रथा को रोका और विधवा विवाह पर ज़ोर दिया। इसमें उनका अंग्रेज़ों ने भी साथ दिया और सती प्रथा के उन्मूलन और पुन: विधवा विवाह को मान्यता दी। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास के कारण ही आज समाज में विधवा विवाह को मान्यता प्राप्त है, इसे बुरी नज़रों से नहीं देखा जाता। आज समाज में पहले की तुलना में विधवाएँ कम ही देखी जाती है। इसका मुख्य कारण समाज का शिक्षित होना है। अब समाज में बाल विवाह देखने को बहुत कम ही मिलते हैं। यह प्रथा किसी गाँव में ही देखने को मिलती है, सरकार द्वारा लड़की व लड़के की उम्र 18 से 19 वर्ष तक रखी गई है। इससे कम उम्र के विवाह को करने पर परिवार वालों को सरकार द्वारा दंडित किया जाता है। समाज का शिक्षित होना जैसे लड़कियों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। अब उनकी स्थिति मज़बूत हुई है, अब वे शिक्षित हैं और उन्हें अपनी स्वेच्छा से विवाह करने का अधिकार प्राप्त है। इन सबके कारण समाज में विधवाओं का स्तर कम हुआ है। यह सही कहा जाता है कि प्रगतिशील समाज सदैव सबके लिए कल्याणकारी होता है। हमें चाहिए हम अपने विचारों को इस प्रगति की गति के साथ मिलाएँ ताकि समाज की स्थिति मज़बूत बन जाए। उन महापुरूषों का भी धन्यवाद करना चाहिए जिनके भरसक प्रयास ने स्त्रियों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

14. आजादी से पहले किसानों की समस्याएँ निम्नलिखित थीं "गरीबी, कर्ज निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, भारी लगान और कर, पुलिस के अत्याचार..." आपके विचार से आजकल किसानों की समस्याएँ कौन-कौन सी हैं?

उत्तर

आजकल वर्तमान परिस्थितियों में किसानों की समस्याएँ निम्न हैं- गरीबी, कर्ज, निहित स्वार्थ, जमींदार, महाजन, फसल का उचित मूल्य न मिलना, गरीबी, पूँजी का आभाव सिंचाई साधनों का अभाव उन्नत किस्म का बीज का उपलब्ध न होना, कर्ज का बोझ सरकार का कोरा आश्वासन सरकारी सहायता का समय पर उन तक न मिल पाना।

15. "सार्वजनिक काम राजा की मर्जी के मोहताज नहीं होते, उसे खुद हमेशा इनके लिए तैयार रहना चाहिए।" ऐसे कौन-कौन से सार्वजनिक कार्य हैं जिन्हें आप बिना किसी हिचकिचाहट के करने को तैयार हो जाते हैं?

उत्तर

बहुत से ऐसे सार्वजनिक कार्य हैं जो हम बिना झिझक के करने के लिए तैयार रहते हैं। कार्य निम्नलिखित हैं वृक्षारोपण का काम, अपने आस-पास सफ़ाई का काम, गरीब बच्चों व परिवारों के लिए सुविधाएँ जुटाना जैसे पुस्तक, कॉपियाँ आदि। अस्पताल में गरीब मरीजों की देखभाल करना इसके अलावे नेत्रदान, रक्तदान, चिकित्सा, शिक्षा व्यवस्था, नारी कल्याण, वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम के लिए सार्वजनिक कार्य हैं।

16. महान सम्राट अशोक ने घोषणा की कि वह प्रजा के कार्य और हित के लिए 'हर स्थान पर और हर समय' हमेशा उपलब्ध हैं। हमारे समय के शासक / लोक-सेवक इस कसौटी पर कितना खरा उतरते हैं? तर्क सहित लिखिए।

उत्तर

हमारे समय के शासक या लोकनेता पहले की तुलना में बिल्कुल नाकारा साबित हुए हैं। पहले के शासक प्रजा के हितों के लिए स्वयं के हित को नहीं मानते थे, उनके लिए जनता सर्वोपरि थी परन्तु आज का नेता इसके बिल्कुल विपरीत है। सत्ता में आना उसके लिए जैसे अपना स्वार्थहित है। वो कभी जनता की समस्याओं के लिए उपलब्ध नहीं होते। अपितु, उन्हें किसी उद्घाटन समारोह या चुनाव प्रचार के समय वोट माँगते देखा जा सकता है। वो जनता से तारीफें तो बटोरना चाहते हैं परन्तु उनकी समस्याओं को सुलझाने व सुनने के लिए उनके पास समय नहीं है। समाज में व्याप्त दो चार समस्योओं का बल निकालकर वह अपने कर्तव्यों को पूरा मान लेते हैं और जो महत्वपूर्ण जटिल समस्याएँ होती हैं, उसे ज्यों का त्यों छोड़ देते हैं। उनको चुनावी घोषणा-पत्र में तो गरीबी उन्मूलन, महिलाओं को आरक्षण, शिक्षा के बेहतर सुविधाए, बेरोजगारी उन्मूलन आदि समस्याओं को दर्शाया जाता है। परन्तु सरकार बनने पर यह सारी समस्याओं पर ध्यान न देना उनका स्वभाव बन गया है। सत्ता पाते ही देश को दीमक की तरह अंदर ही अंदर चाट डालते हैं और जनता के लिए केवल टूटी अर्थव्यवस्था छोड़ जाते हैं। आज के नेता जनता के लिए आदर्श के स्थान पर एक घृणा का पात्र बनकर रह गया है। वो समाज में एक आदर्श के रूप में स्वयं को स्थापित नहीं कर पा रहें। इसका परिणाम है कि लोग राजनीति व राजनेताओं से बचकर रहना चाहते हैं।

17. 'औरतों के परदे में अलग-थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रुकावट आई।' कैसे ?

उत्तर

औरतों के परदे में अलग-थलग रहने से सामाजिक जीवन के विकास में रुकावट आई। उन्हें शिक्षा से वंचित रहना पड़ा। अब समाज में उनकी भागीदारी कम हो गई। उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य में गिरावट आई । औरतें घर की चारदीवारी तक सिमट कर रह गईं । नारी उत्पीड़न बढ़ गया। पुरुषों के अधिकार और वर्चस्व बढ़ते गए। इससे समाज के विकास में रुकावट आई।

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18. मध्ये काल के इन संत रचनाकारों की अनेक रचनाएँ अब तक आप पढ़ चुके होंगे। इन रचनाकारों की एक-एक रचना अपनी पसंद से लिखिए-

(क) अमीर खुसरो

(ख) कबीर

(ग) गुरू नानक

(घ) रहीम

उत्तर

  • अमीर खुसरो-पहेलियाँ एवं मुकरियाँ
  • कबीर-बीजक
  • गुरूनानक-गुरुग्रंथ साहिब
  • रहीम-रहीम के दोहे।

(क) अमीर खुसरो-वह आवै तो शादी होय उस बिन दूजा और न कोए। मीठे लागे उनके बोल, क्यों सखी साजन। न सखी ढोल।

(ख) कबीर-कबीर एक महान समाज सुधारक थे, जिन्होंने समाज में व्याप्त तत्कालीन कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया।
मौको कहाँ हूँढे बँदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलाश में।
ना तो कौने क्रियाकर्म में नहीं यो बैराग में, कहो कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।

(ग) गुरुनानक-चारि नदी अगनी असराला कोई गुरुमुखि बुझै सबदि निराला।
साकत दुरमति डूबहि दाझहिं
गुरि राखे हरि सिव राता है।

(घ) रहीम-रहिमन यहि संसार में सबसे मिलियो धाइ।
ना जाने केहि भेस में नारायण मिलि जाइ।।

19. बात को कहने के तीन प्रमुख तरीके अब तक आप जान चुके होंगे-

(क) अभिधा (ख) लक्षणा (ग) व्यंजना

बताइए, नेहरू जी का निम्नलिखित वाक्य इन तीनों में से किसका उदाहरण है? यह भी बताइए कि आपको ऐसा क्यों लगता है?

"यदि ब्रिटेन ने भारत में यह बहुत भारी बोझ नहीं उठाया होता (जैसा कि उन्होंने हमें बताया है) और लंबे समय तक हमें स्वराज्य करने की वह कठिन कला नहीं सिखाई होती, जिससे हम इतने अनजान थे, तो भारत न केवल अधिक स्वतंत्र और अधिक समृद्ध होता.... बल्कि उसने कहीं अधिक प्रगति की होती।"

उत्तर

नेहरू जी का यह वाक्य व्यंजना शैली का उदाहरण है। यहाँ पर नेहरू जी ने सीधे प्रहार न कर प्रतीक के रूप पर अंग्रेज़ी सरकार व भारतीय जनता पर प्रहार किया है। जिसके फलस्वरूप वह आरोप को सीधे न लगाकर घुमाकर अपनी बात को कह रहे हैं। जब व्यंजना शैली में लिखते हैं तो कोशिश करते हैं हम विवादों में ना फँसे और अपनी बात भी भली प्रकार से कह जाएँ। यही इस शैली का गुण है। यहाँ नेहरु जी भारत का विकास न कर पाने का वर्णन भी करते हैं। व्यंजना में लिखते हुए हम उस बात के लिए प्रतीक गढ़ते हैं, जैसे- पशु, टयूब लाईट, या कोई अन्य वस्तु आदि और लिखते इस प्रकार हैं कि मानो पढ़ने वालो को उस बात की ओर इशारा किया जा रहा है। इसके विपरीत शाब्दिक विधा में व्यक्तियों के बारे में सीधा लिख दिया जाता है। लक्षणितजैसा नाम है व्यक्ति के लक्षणों के बारे में बताने वाले पात्र गढ़ लेते हैं।

20. "नयी ताकतों ने सिर उठाया और वे हमें ग्रामीण जनता की ओर ले गईं। पहली बार एक नया और दूसरे ढंग का भारत उन युवा बुद्धिजीवियों के सामने आया..."

आपके विचार से आजादी की लड़ाई के बारे में कही गई ये बातें किस 'नयी ताकत' की ओर इशारा कर रही हैं? वह कौन व्यक्ति था और उसने ऐसा क्या किया जिसने
ग्रामीण जनता को भी आज़ादी की लड़ाई का सिपाही बना दिया?

उत्तर

उपर्युक्त वाक्य इशारा करती है कि भारत के माध्यम वर्ग में नयी ताकत’ की खोज की गई है जिसमें हर विपत्ति का सामना करने की शक्ति थी। उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक किया। इससे मध्यम वर्ग में राजनीतिक चेतना जाग उठी। यह वर्ग भारत की आजादी के लिए जागरूक हो उठा। यह वर्ग उठ खड़ा होकर आजादी के लिए सीना ताने खड़ा रहा।

21. 'भारत माता की जय' आपके विचार से इस नारे में किसकी जय की बात कही जाती है? अपने उत्तर का कारण भी बताइए।

उत्तर

'भारत माता की जय' नारे में भारतीय संस्कृति, समाज, और राष्ट्रीयता की जय की बात की जाती है। यह नारा भारतीय राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है और इसका मतलब है कि हम सभी भारत की समृद्धि, समर्थन, और सम्मान के पक्षधर होने की प्रेरणा करते हैं।

इस नारे में 'भारत माता' की जय का मतलब है कि हम सभी भारत की मातृभूमि, उसकी संस्कृति, और उसके लोगों के प्रति सम्मान और प्रेम का इजहार करते हैं। यह नारा राष्ट्रीय एकता, गर्व, और स्वाभिमान का प्रतीक है और भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों, और धर्मों के लोगों को एक साथ लाने का प्रयास करता है।

इसी तरह से, 'भारत माता की जय' नारे में समर्थन, आदर्शता, और समृद्धि की बात की जाती है, जिसमें भारतीय समाज के सभी तरंग शामिल होते हैं और उनकी समर्थन की जाती है।

22. (क) भारत पर प्राचीन काल से ही अनेक विदेशी आक्रमण होते रहे। उनकी सूची बनाइए। समय क्रम में बनाएँ तो और भी अच्छा रहेगा।

उत्तर

भारत पर प्राचीन काल में होने वाले आक्रमणों को निम्नलिखित रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है-

महमूद गज़नवी, मोहम्मद गोरी, नादिरशाह, अफगानियों का आक्रमण, मंगोलों का आक्रमण, तुर्कों का आक्रमण, अंग्रेज़ों
का आक्रमण।।

(ख) आपके विचार से भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना इससे पहले के आक्रमणों से किस तरह अलग है?

उत्तर

ब्रिटिश सरकार से पूर्व पहले जितनी भी जातियों ने भारत पर आक्रमण किया या तो उसने देश में खूब लूट-पाट मचाई धन-संपत्ति लूटकर चले गए या इसी धरती की सभ्यता या संस्कृति को अपना लिया और यहीं बस गए। उन विदेशियों ने भारत पर शासन भी किया तो भारत को अपनेपन के भाव से देखा। लेकिन इसके विपरीत अंग्रेजों की शासन सत्ता पूर्णतया अलग थी। उन्होंने भारत को लूटा और शासन की बागडोर अपने हाथ में लेकर भारत को गुलाम बना दिया। भारत का प्रशासनिक ढाँचा इंग्लैंड से तैयार होने लगा।

23. (क) अंग्रेजी सरकार शिक्षा के प्रसार को नापसंद करती थी। क्यों?

उत्तर

अंग्रेज़ी सरकार को भारत में शिक्षा का प्रसार करना उचित नहीं लगता था। इसका मुख्य कारण यह था कि अंग्रेज़ी सरकार भली-भाँति जानती थी, शिक्षा मनुष्य के विकास के सारे रास्तों को खोल देती है, उसको विकास के रास्ते देती है और यह मजबूती वे भारतीय समाज में नहीं आने देना चाहते थे। भारत में शिक्षा के अभाव के कारण ज़्यादातर जनता अशिक्षित थी। जिसके कारण उनका समुचित विकास नहीं हो पाया। वे उन्हीं पुराने रूढ़ियों, रीतियों में उलझे हुए थे और अंग्रेज़ी शासन के लिए यह उचित था। यदि लोग शिक्षित हो जाते तो उनमें जागृति उत्पन्न हो जाती। वे अपने अधिकारों के लिए सचेष्ट हो जाते जो अंग्रेज़ी शासन के लिए एक बड़े खतरे से कम नहीं था।

(ख) शिक्षा के प्रसार को नापसंद करने के बावजूद अंग्रेजी सरकार को शिक्षा के बारे में थोड़ा-बहुत काम करना पड़ा। क्यों?

उत्तर

अंग्रेज़ों ने, शिक्षा का प्रसार न करने के हिमायती होते हुए भी, भारत में शिक्षा का थोड़ा बहुत प्रसार किया। इसमें भी उनका ही स्वार्थ हित था। भारत में पैर पसारने के साथ-साथ अपनी बढ़ती व्यवस्था के लिए उन्हें बड़ी संख्या में क्लर्कों को प्रशिक्षित करके तैयार करने का प्रबन्ध करना पड़ा और इन्हीं परिस्थितियों वश भारत में शिक्षा का प्रसार करना पड़ा। बेशक यह शिक्षा सीमित थी व परिपूर्ण नहीं थी, फिर भी उसने नए और सक्रिय विचारों की दिशा में भारतीयों के दिमाग की खिड़कियाँ और दरवाज़े खोल दिए जिससे भारतीय समाज में परिवर्तन होने लगा और आधुनिक चेतना का प्रसार हुआ।

24. ब्रिटिश शासन के दौर के लिए कहा गया कि "नया पूँजीवाद सारे विश्व में ज बाज़ार तैयार कर रहा था उससे हर सूरत में भारत के आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़न ही था।" क्या आपको लगता है कि अब भी नया पूँजीवाद पूरे विश्व में जो बाजान तैयार कर रहा है, उससे भारत के आर्थिक ढाँचे पर प्रभाव पड़ रहा है? कैसे?

उत्तर

इस नए पूँजीवाद ने भारतीय समाज के पूरे आर्थिक और संरचनात्मक आधार का विघटन कर दिया। यह ऐसी व्यवस्था थी जिसका संचालन होता तो बाहर से था, पर इसको भारत पर लाद दिया गया था। भारत ब्रिटिश ढ़ाँचे का औपनिवेशिक और खेतिहर पुछल्ला मात्र रह गया था। बिल्कुल हमारे आर्थिक ढाँचे पर पूँजीवाद का प्रभाव पड़ सकता है। स्थानीय उघोग-धंधे बरबाद हो रहे हैं। भारत की पूँजी बाहर जा रही है। आज भारत का पूरा बाज़ार विदेशी उत्पादनों से भरा हुआ है और हमारा सारा धन पूँजीपतियों के हाथों में जा रहा है।

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25. गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर निम्नलिखित में किस तरह का बदलाव आया, पता कीजिए-

(क) कांग्रेस संगठन में।

उत्तर

कांग्रेस संगठन में शिथिलता समाप्त हो गई। गांधी जी के आने से कांग्रेस संगठन की मजबूती बढ़ी। इसमें किसान एवं मजदूर वर्ग भी शामिल होकर नए उमंग के साथ कार्य करने लगे।

(ख) लोगों में विद्यार्थियों, स्त्रियों, उद्योगपतियों आदि में।

उत्तर

छात्र विश्वविद्यालय छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े, औरतें भी शामिल हुईं। कई धनी वर्ग भी गांधी जी के संपर्क में आए। इन लोगों ने गांधी के साथ अंग्रेज़ों के विरुद्ध नारा बुलंद किया।

(ग) आज़ादी की लड़ाई के तरीकों में।

उत्तर

आज़ादी की लड़ाई के तरीकों में भी परिवर्तन आया। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ाई में गांधी जी ने सत्य और अहिंसा को प्रमुख हथियार बनाया।

(घ) साहित्य, संस्कृति, अखबार आदि में।

उत्तर

साहित्य, संस्कृति का विकास हुआ। कई अखबार निकले। अखबारों में अंग्रेजों की दमन की नीति की खबरें प्रमुखता से छपने लगीं। स्वतंत्रता के प्रति लोगों में जागरुकता बढ़ी।

26. "अक्सर कहा जाता है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है।" आपके विचार से भारत में किस-किस तरह के अंतर्विरोध हैं? कक्षा में समूह बनाकर चर्चा कीजिए। (संकेत अमीरी-गरीबी, आधुनिकता मध्ययुगीनता, सुविधा-संपन्न- सुविधा विहीन आदि)

उत्तर

भारत अंतर्विरोधों का देश है- यह बात कई तरह से सच ही लगती है, जैसे भारत में कहीं तो अमीरी का थाह नहीं तो कहीं बहुत निर्धन लोग हैं। उच्चवर्ग में अत्यंत आधुनिकता है तो मध्ययुगीनता भी है, यहाँ शासन करने वाले भी हैं और शासित भी हैं, ब्रिटिश हैं तो भारतीय भी हैं, यहाँ सुविधाएँ भी बहुत हैं तो असुविधाओं का भी भंडार हैं, अनेकों धर्म और जातियों के लोग हैं तो अखंड एकता भी है क्योंकि इनका स्तर एक ही है। अत: यह स्पष्ट है कि भारत अंतर्विरोधों का देश है।

27. पृष्ठ संख्या 122 पर नेहरू जी ने कहा है कि "हम भविष्य की उस 'एक दुनिया' की तरफ़ बढ़ रहे हैं जहाँ राष्ट्रीय संस्कृतियाँ मानव जाति की अंतरराष्ट्रीय संस्कृति में घुलमिल जाएँगी।" आपके अनुसार उस 'एक दुनिया' में क्या-क्या अच्छा है और कैसे-कैसे खतरे हो सकते हैं?

उत्तर

उस दुनिया में निम्नलिखित बातें अच्छी होंगी -

(1) सबको रोजगार के, शिक्षा के समान अवसर प्राप्त होंगे।

(2) सबको समानता का अधिकार प्राप्त होगा, ना कोई अमीर होगा, ना ही कोई गरीब, ना रंगभेद होगा, ना जाति पाति के भेदभाव होंगे।

(3) एकता और अखंड देश का निर्माण होगा।

(4) देश की प्रगति नए रास्तों पर बढ़ेगी।

निम्नलिखित खतरे होंगे -

(1) सबको समान रूप से रोज़गार देने के अवसरों में कहीं अराजकता ना फैल जाए क्योंकि अगर सबके लिए रोज़गार उपलब्ध नहीं हो पाया तो अंसतोष की भावना उत्पन्न होगी जिसके कारण विरोध उत्पन्न हो सकता है।

(2) सबके लिए यदि समान अवसर न प्राप्त हो तो उसकी एकता व अखंडता पर प्रभाव पड़ सकता है।

(3) अंतर्विरोधों से देश की प्रगति रूक सकती है।

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