NCERT Solutions Class 12, Hindi, Antral, पाठ- 1, सूरदास की झोंपड़ी
1. 'चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता?' नायकराम के इस कथन में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यद्यपि यह कथन नायकराम का है पर इस कथन से सूरदास की मन:स्थित की झलक मिल जाती है। जगधर ने सूरदास से पूछा था-सूरे, क्या आज चूल्हा ठंडा नहीं किया था? इसका जवाब नायकराम ने दियां – ‘चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता।’ सूरदास के दुश्मन भैरों ने सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाकर अपना कलेजा ठंडा कर लिया था। उसकी पत्ी सुभागी उससे रूठकर सूरदास की झोंपड़ी में चली आई थी। तभी से भैरों सूरदास से बदला लेने की ताक में था। उसने झोपड़ी में आग लगाकर अपने मन को तसल्ली देने का काम किया था। सूरदास इस समय बहुत व्यथित था। उसकी मन:स्थिति बड़ी विचित्र थी। उसने पाँच सौसे अधिक रुपए जमा करके एक पोटली में रखकर इसी झोंपड़ी में छिपा रखे थे। वह इन रुपयों से अपने मन में सोची कई योजनाएँ पूरी करना चाहता था। आग लगने के कारण उसे अपनी सभी योजनाओं पर पानी फिरता नजर आया। वह अपनी जमा-पूँजी की बात न किसी से कह सकता था और न स्वीकार कर सकता था। उसे झोंपड़ी के जल जाने का इतना दुःख न था जितना उस पोटली का जिसमें उम्र भर की कमाई थी।
2. भैरों ने सूरदास की झोपड़ी क्यों जलाई?
उत्तर
भैरों की पत्नी सुभागी भैरों से लड़कर सूरदास की झोंपड़ी में चली आई थी। भैरों ताड़ी पीकर सुभागी को मारता-पीटता था। उसकी माँ उन दोनों में झगड़ा करवाती थी। भैरों को सुभागी का सूरदास की झोंपड़ी में आकर रहना बहुत बुरा लगा। उसने सूरदास को सबक सिखाने का निश्चय किया और एक रात उसने चुपके से दियासलाई लगा दी। वह अपनी करतूत को जगधर के सामने स्वीकार भी कर लेता है- ‘कुछ हो, दिल की आग तो ठंडी हो गई।’ अर्थात् भैरों बदले की आग में जल रहा था। सूरदास की झोंपड़ी को आग लगाकर उसके अशांत मन को कुछ चैन मिला। वह झोंपड़ी में से सूरदास की जमा-पूँजी वाली थैली भी उड़ा लाया और इसे उसने सुभागी को बहका ले जाने का जुर्माना बताया। वह सूरदास को रोते हुए देखना चाहता था। उसने जगधर के सामने कहा भी – ‘जब तक उसे रोते न देखूँगा, दिल का काँटा न निकलेगा। जिसने मेरी आबरू बिगाड़ दी, उसके साथ जो चाहे करूँ, मुझे पाप नहीं लग सकता।’
3. 'यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।' संदर्भ सहित विवेचन कीजिए।
उत्तर
सूरदास एक अँधा भिखारी था। उसकी संपत्ति में एक झोपड़ी, जमीन का छोटा-सा टुकड़ा और जीवनभर जमा की गई पूंजी थी। यही सब उसके जीवन के आधार थे। ज़मीन उसके किसी काम की नहीं थी। उस पर सारे गाँव के जानवर चरा करते थे। सूरदास उसी में प्रसन्न था। झोपड़ी जल गई पर वह दोबारा भी बनाई जा सकती थी लेकिन उस आग में उसकी जीवनभर की जमापूँजी जलकर राख हो गई थी। उसे दोबारा इतनी जल्दी जमा कर पाना संभव नहीं था। उसमें 500 सौ रुपए थे। उस पूँजी से उसे बहुत-सी अभिलाषाएँ थी। वह गाँववालों के लिए कुँआ बनवाना चाहता था, अपने बेटे की शादी करवाना चाहता था तथा अपने पितरों का पिंडदान करवाना चाहता था। झोपड़ी के साथ ही पूँजी के जल जाने से अब उसकी कोई भी अभिलाषा पूरी नहीं हो सकती थी। उसे लगा कि यह फूस की राख नहीं है बल्कि उसकी अभिलाषाओं की राख है। उसकी सारी अभिलाषाएँ झोपड़ी के साथ ही जलकर राख हो गई। अब उसके पास कुछ नहीं था। बस दुख तथा पछतावा था। वह गर्म राख में अपनी अभिलाषाओं की राख को ढूँढ रहा था।
4. जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों?
उत्तर
जगधर जब भैरों के घर यह पता करने पहुँचा कि सूरदास के घर आग किसने लगवाई है, तो उसे पता लगा कि भैरों ने ही सूरदास के घर आग लगवाई थी। इसके साथ ही उसने सूरदास की पूरे जीवन की जमापूँजी भी हथिया ली है। यह राशि पाँच सौ रुपए से अधिक की थी। जगधर को भैरों के पास इतना रुपया देखकर अच्छा न लगा। वह जानता था कि यह इतना रुपया है, जिससे भैरों की जिंदगी की सारी कठिनाई पलभर में दूर हो सकती है। भैरों की चांदी होते देख, उससे रहा न गया। वह मन-ही-मन भैरों से ईर्ष्या करने लगा। लालच उसके मन में साँप की भांति फन फैलाए खड़ा हो गया। भैरों के इतने रुपए लेकर आराम से जिंदगी जीने के ख्याल से ही वह तड़प उठता। भैरों की खुशी उसके लिए दुख का कारण बन गई थी।
5. सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था?
उत्तर
सूरदास एक अँधा भिखारी था। वह लोगों के दान पर ही जीता था। एक अँधे भिखारी के पास इतना धन होना लोगों के लिए हैरानी की बात हो सकती थी। इस धन के पता चलने पर लोग उस पर संदेह कर सकते थे कि उसके पास इतना धन कहाँ से आया। वह जानता था कि एक भिखारी को धन जोड़कर रखना सुहाता नहीं है। लोग उसके प्रति तरह-तरह की बात कर सकते हैं। अतः जब जगधर ने उससे उन रुपयों के बारे में पूछा, तो वह सकपका गया। वह जगधर को इस बारे में बताना नहीं चाहता था। जगधर के द्वारा यह बताए जाने पर कि वह रुपया अब भैरों के पास है, तो उसने उन रुपयों को अपना मानने से इंनकार कर दिया। वह स्वयं को समाज के आगे लज्जित नहीं करना चाहता था। वह जानता था कि कोई उसकी गरीबी का मजाक नहीं उड़ाएगा। लोगों को यह पता लगा कि उसके पास इतना धन था, तो वह लोगों को इसका जवाब नहीं दे पाएगा। अतः वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त रखना चाहता था।
6. 'सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।' इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर
जब सूरदास ने घीसू द्वारा मिठुआ को चिढ़ाते हुए यह कहते सुना-‘खेल में रोते हो।’ तब सूरदास की मनोदशा में एकाएक परिवर्तन आ गया।
इससे पहले सूरदास अत्यंत दुःखी था। सूरदास कहाँ तो नैराश्य, ग्लानि, चिंता और क्षोभ के अपार जल में गोते खा रहा था, कहाँ यह चेतावनी सुनते ही उसे ऐसा मालूम हुआ, किसी ने उसका हाथ पकड़कर किनारे पर खड़ा कर दिया हो। वाह! मैं तो खेल में रोता हूँ। कितनी बुरी बात है। लड़के भी खेल में रोना बुरा समझते हैं, रोने वाले को चिढ़ाते हैं और मै खेल में रोता हूँ। सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाजी-पर-बाजी हारते हैं, चोट-पर-चोट खाते हैं, धक्के-पर धक्के सहते हैं पर मैदान में डटे रहते हैं, उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते। हिम्मत उनका साथ नहीं छोड़ती, दिल पर मालिन्य के छीटे भी नहीं आते, न किसी से जलते हैं न चिढ़ते हैं। खेल में रोना कैसा? खेल हँसने के लिए, दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं।
सूरदास उठ खड़ा हुआ, और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।
7. 'तो हम सौ लाख बार बनाएँगे' इस कथन के संदर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए।
उत्तर
इस कथन के आधार पर सूरदास के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरती हैं :
कर्मशील व्यक्ति : सूरदासं एक कर्मशील व्यक्तित्व का स्वामी है। उसमें अपने कर्म के आधार पर विपत्तियों का सामना करने का साहस है।
हार न मानने वाला : सूरदास परिस्थिति से जुझने वाला है। वह एक बार झोंपड़ी के नष्ट हो जाने पर तब तक पुनः बनाने का संकल्प करता है जब तक नष्ट करने वाला थक न जाए।
सहनशील : सूरदास सहनशील व्यक्ति है। झोपड़ी जलने की घटना में उसका सब कुछ जलकर नष्ट हो जाता है, पर वह सब कुछ धर्यपूर्वक सह जाता है।
संकल्प का धनी : सूरदास अपने संकल्प का धनी है।
आशावान : सूरदास भविष्य के प्रति आशावान बना रहता है।