(i)
दीपावली
भूमिका - दीपावली हिन्दुओं का महत्वपूर्ण उत्सव है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में मनाया जाता है। इस रात को घर-घर में दीपक जलाए जाते हैं। इसलिए उसे 'दीपावली' कहा गया। रात्रि के घनघोर अन्धेरे में दीपावली का जगमगाता हुआ प्रकाश अति सुन्दर दृश्य की रचना करता है।
मानने का कारण - दीवाली वर्षा ऋतु की समाप्ति पर मनाई जाती है। धरती की कीचड़ और गन्दगी समाप्त हो जाती है। अतः लोग अपने घरों-दुकानों की पूरी सफाई करवाते हैं ताकि सीलन, कीड़े-मकोड़े और अन्य रोगाणु नष्ट हो जाएँ। दीवाली से पहले लोग रंग-रोगन करवाकर अपने भवनों को नया कर लेते हैं। दीप जलाने का भी शायद यही लक्ष्य रहा होगा कि वातावरण के सब रोगाणु नष्ट हो जाएँ।
दीवाली के साथ निम्नलिखित प्रसंग भी जुड़े हुए हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री रामचन्द्र जी रावण का संहार करने के पश्चात् व्रापस अयोध्या लौटे थे। उनकी खुशी में लोगों ने घी के दीपक जलाए थे। भगवान् महावीर ने तथा स्वामी दयानन्द ने इस तिथि को निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए जैन सम्प्रदाय तथा आर्य समाज में भी इस दिन का विशेष महत्व है। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। इसलिए गुरुद्वारों की शोभा इस दिन दर्शनीय होती है। इसी दिन भगवान कृष्ण ने इन्द्र के क्रोध से ब्रज की जनता को बचाया था।
व्यापारियों का प्रिय उत्सव - व्यापारियों के लिए दीपावली उत्सव-शिरोमणि है। व्यापारी-वर्ग विशेष उत्साह से इस उत्सव को मनाता है। इस दिन व्यापारी की आकांक्षा भी करते हैं। घर-घर में लक्ष्मी का पूजन होता है। ऐसी मान्यता है कि उस रात लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं। इस कारण लोग रात को अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं। हलवाई और आतिशबाजी की दुकानों पर इस दिन विशेष उत्साह होता है। बाजार मिठाई से लद जाते हैं। यह एक दिन ऐसा होता है, जब गरीब से अमीर तक, कंगाल से राजा तक सभी मिठाई का स्वाद प्राप्त करते हैं। लोग आतिशबाजी छोड़कर भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। गृहिणियाँ इस दिन कोई-न-कोई बर्तन खरीदना शकुन समझती हैं।
निष्कर्ष - दीवाली की रात को कई लोग खुलकर जुआ खेलते हैं। इस कुप्रथा को बन्द किया जाना चाहिए। कई बार जुएबाजी के कारण प्राणघातक झगड़े हो जाते हैं। आतिशबाजी पर भी व्यर्थ में करोड़ों-अरबों रुपयों खर्च हो जाता है। कई बार आतिशबाजी के कारण आगजनी की दुर्झटनाएँ हो जाती हैं। इन विषयों पर पर्याप्त विचार होना चाहिए।
(ii)
कोरोना वायरस
कोरोना वायरस (COVID-19) क्या है - विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना का नाम कोविड-19 (COVID-19) रखा है, जहाँ 'CO' का अर्थ है कोरोना (Corona), 'VI' का अर्थ है वायरस (Virus), 'D' का अर्थ है डिसिस (Disease) और '19' का अर्थ है साल 2019 यानी जिस वर्ष यह बीमारी पैदा हुई। इस वायरस का सबसे पहले चीन के 'वुहान' प्रान्त में देखा गया जो धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैल चुका है।
इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई - कोरोना की उत्पत्ति सबसे पहले 1930 में एक मुर्गी में हुई थी और इसने मुर्गी के श्वसन प्रणाली को प्रभावित किया था और आगे चलक 1940 में कई अन्य जानवरों में भी पाया गया। इसके बाद सन् 1960 में एक व्यक्ति में पाया गया जिसे सर्दी की शिकायत थी। इन सब के बाद वर्ष 2019 में इसे दुबारा इसका विकराल रूप चीन में देखा गया जो अब धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलता जा रहा है।
कोरोना के लक्षण - (i) बुखार, (ii) सर्दी और खासी, (iii) गले में खराश, (iv) शरीर में थकान, (v) सांस लेने में दिक्कत (सबसे प्रमुख), (vi) मांसपेशियों में जकड़न, (vii) लंबे समय तक थकान ।
खुद को कोरोना से कैसे बचाएं - कोरोना का संक्रमण बड़ी आसानी से फैल जाता है और इसकी अब तक कोई दवा नहीं मिली है, इसलिये इसे बहुत घातक रोग की श्रेणी में रखा गया है। कोरोना के मामले दिन प्रतिदिन पूरी दुनिया में बढ़ते जा रहे हैं। WHO ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। इतिहास इस बात का गवाह है कि हर 100 वर्ष पर दुनिया में कोई न कोई महामारी जरूर आती है और इससे बचने का सबसे अच्छा उपाय बचाव है।
कुछ ऐसे कदम जो आप निजी तौर पर ले सकते हैं, जिससे आप खुद को इससे बचा सकते हैं-
(a) हमेशा अपने हाथ धोएं।
(b) अपने मुह को बार-बार न छुए।
(c) सबसे 5 से 6 फीट की दूरी बना कर चलें या रहें।
(d) बहुत आवश्यक न हो तो घर से बाहर न जाएं।
(e) सार्वजनिक स्थानों पर जैसे कि मॉल, बाजार आदि जगहों पर न जाएं।
(f) अपने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करें।
(g) लोगों से हाथ न मिलाएं।
(h) मास्क लगाना उस व्यक्ति के लिये आवश्यक होता है जो कोरोना से ग्रसित होता है, परंतु कई बार संक्रमित व्यक्ति को पता ही नहीं होता की उसे कोरोना है, इसलिये अपनी सुरक्षा अपने हाथों में। मास्क अवश्य लगाएं।
(i) रेलगाड़ी, बस आदि से यात्रा करने से बचें।
(j) कम से कम 20 सेकेंड तक साबुन से हाथ धोना न भूलें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड और नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) से प्राप्त सूचना के आधार पर हम आपको कोरोना वायरस से बचाव के तरीके बता रहे हैं। एयरपोर्ट पर यात्रियों की स्क्रीनिंग हो या फिर लैब में लोगों की जांच, सरकार ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए कई तरह की तैयारी की है। इसके अलावा किसी भी तरह की अफवाह से बचने, खुद की सुरक्षा के लिए कुछ निर्देश जारी किए हैं जिससे कि कोरोना वायरस से निपटा जा सकता है। लगभग 18 साल पहले सार्स वायरस से भी ऐसा ही खतरा बना था। 2002-03 में सार्स की वजह से पूरी दुनिया में 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। पूरी दुनिया में हजारों लोग इससे संक्रमित हुए थे। इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा था। कोरोना वायरस के बारे में अभी तक इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस पार्सल, चिट्ठियों या खाने के जरिए फैलता है। कोरोना वायरस जैसे वायरस शरीर के बाहर बहुत ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह सकते।
कोरोना वायरस को लेकर लोगों में एक अलग ही बेचैनी देखने को मिली है। मेडिकल स्टोर्स में मास्क और सैनेटाइजर की कमी हो गई है, क्योंकि लोग तेजी से इन्हें खरीदने के लिए दौड़ रहे हैं। परन्तु सैनेटाइजर का उपयोग तभी करना चाहिए जब आप ऐसे स्थान पर है जहां पानी की सुविधा नहीं हैं या बार-बार हाथ धोना संभव नहीं है। इसके अलावा बहुत महंगे मास्क पहनना जरूरी नहीं है। इसके लिए घर पर बने मास्क, तौलिया या रूमाल से भी अपने मुंह को ढक सकते हैं।
क्या कोरोना वायरस से मृत्यु निश्चित होती है - नहीं जरूरी नहीं की आपको यदि कोरोना है तो अब बचने की कोई उम्मीद नहीं है। सच यह है कि जितनी जल्दी आपको इसका पता लगता है अपने नजदीकी अस्पताल जरूर जाएँ, क्योंकि इसका उपचार घर पर मुमकिन नहीं है और बाकी परिवार वाले भी संक्रमित हो सकते हैं।
निष्कर्ष - सतर्क रहें, स्वच्छ रहें, स्वस्थ्य रहें और कोरोना को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करें। इससे पहले भी कई महामारी आई हैं, जिन पर हमने पूरी तरह से विजय हासिल की है और इसी तरह कोरोना को भी हम साथ मिलकर हराएंगे। दूसरों के चक्कर में पड़ने से अच्छा है अपनी रक्षा करें, यही काफी है।
(iii)
वसंत ऋतु
सभी ऋतुओं का अपना - अपना महत्त्व है और वे सभी हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं, पर इनमें श्रेष्ठ, मादक, सुन्दर और आकर्षक ऋतु है- वसंत ऋतुओं का राजा है। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने को ऋतुओं का राजा वसंत, ऋतुराज कुसुमाकर कहकर, इस ऋतु को महत्त्व प्रदान किया है। यह अपने सारे साज-बाज और शान-शौकत के साथ पृथ्वी पर अवतरित होता है। इसके आते ही चारों ओर आनन्द और उल्लास छा जाता है। चेहरे की सुस्ती मिट जाती है और तन का आलस्य भाग जाता है। वृक्षों में नये कोमल पत्ते आ जाते हैं और फलों से प्रकृति लद जाती है। सारा वातावरण मादक और सुगन्धित बन जाता है।
वसंत के आते ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग जाता है। वातावरण समशीतोष्ण रहता है। न शीत की कठोरता, न ग्रीष्म का ताप। एक हल्का-हल्का गुलाबी जाड़ा पड़ता है, जिससे प्रत्येक प्राणों की नस-नस में प्रफुल्लता और उमंग की लहरें उठतीं हैं। वसंत की आगवानी पूरी प्रकृति करती है। संपूर्ण नवीन वेषभूषा धारणा कर इसका उल्लासपूर्वक स्वागत करती है। मोर झूम-झूमकर नाचने लगते हैं, भ्रमरों का गुंजन होने लगता है। कोयल कू-कू करने लगती है। दूर-दूर तक फैला आम्रवन भूरी मंजरियों से लद जाता है और उसकी कच्ची-क्वाँरी सुगंध से समस्त वातावरण मादक हो उठता है, पक्षी कलरव करने लगते हैं, नदियाँ कल-कल कर गाना सुनाने लगती हैं। वस्तुतः वसंत के आगमन के साथ ही हमारे ठिठुरे अंगों में नयी स्फूर्ति उमड़ पड़ती है, आँखों में नयी चमक आ जाती है और गालों पर लालिमा दौड़ने लगती है। तन-मन दोनों रंग जाते हैं।